Section 48 Arbitration and Conciliation Act, 1996
Section 48 Arbitration and Conciliation Act, 1996:
Conditions for enforcement of foreign awards.—
(1) Enforcement of a foreign award may be refused, at the request of the party against whom it is invoked, only if that party furnishes to the court proof that—
(a) the parties to the agreement referred to in section 44 were, under the law applicable to them, under some incapacity, or the said agreement is not valid under the law to which the parties have subjected it or, failing any indication thereon, under the law of the country where the award was made; or
(b) the party against whom the award is invoked was not given proper notice of the appointment of the arbitrator or of the arbitral proceedings or was otherwise unable to present his case; or
(c) the award deals with a difference not contemplated by or not falling within the terms of the submission to arbitration, or it contains decisions on matters beyond the scope of the submission to arbitration: Provided that, if the decisions on matters submitted to arbitration can be separated from those not so submitted, that part of the award which contains decisions on matters submitted to arbitration may be enforced; or
(d) the composition of the arbitral authority or the arbitral procedure was not in accordance with the agreement of the parties, or, failing such agreement, was not in accordance with the law of the country where the arbitration took place; or
(e) the award has not yet become binding on the parties, or has been set aside or suspended by a competent authority of the country in which, or under the law of which, that award was made.
(2) Enforcement of an arbitral award may also be refused if the Court finds that—
(a) the subject-matter of the difference is not capable of settlement by arbitration under the law of India; or
(b) the enforcement of the award would be contrary to the public policy of India. Explanation.—Without prejudice to the generality of clause (b) of this section, it is hereby declared, for the avoidance of any doubt, that an award is in conflict with the public policy of India if the making of the award was induced or affected by fraud or corruption.
(3) If an application for the setting aside or suspension of the award has been made to a competent authority referred to in clause (e) of sub-section (1) the Court may, if it considers it proper, adjourn the decision on the enforcement of the award and may also, on the application of the party claiming enforcement of the award, order the other party to give suitable security.
Supreme Court of India Important Judgments And Leading Case Law Related to Section 48 Arbitration and Conciliation Act, 1996:
Lmj International Ltd vs Sleepwell Industries Co. Ltd on 20 February, 2019
Venture Global Engineering vs Satyam Computer Services Ltd. & on 10 January, 2008
Power Machines India Limited vs State Of Mahdya Pradesh & Ors on 17 April, 2017
M/S. Centrotrade Minerals & vs Hindustan Copper Ltd on 9 May, 2006
A. Ayyasamy vs A. Paramasivam & Ors on 4 October, 2016
माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 48 का विवरण :
विदेशी पंचाट के प्रवर्तन के लिए शर्तें-(1) उस पक्षकार के निवेदन पर जिसके विरुद्ध किसी विदेशी पंचाट का अवलंब लिया जा रहा है, विदेशी पंचाट को प्रवृत्त करने से इंकार केवल उस दशा में किया जा सकेगा जब कि वह पक्षकार, न्यायालय को यह सबूत दे देता है कि-
(क) धारा 44 में निर्दिष्ट करार के पक्षकार, उनको लागू होने वाली विधि के अधीन किसी असमर्थता से ग्रस्त थे या उक्त करार उस विधि के अधीन, जिसके अधीन पक्षकारों ने उसे किया है या उसके बारे में कोई संकेत न होने पर, उस देश की विधि के अधीन, जहां पंचाट किया गया था, विधिमान्य नहीं हैं ; या
(ख) उस पक्षकार को, जिसके विरुद्ध पंचाट का अवलंब लिया जा रहा है मध्यस्थ की नियुक्ति की या माध्यस्थम् कार्यवाहियों की उचित सूचना नहीं दी गई थी, या वह अन्यथा अपना पक्ष-कथन प्रस्तुत करने में असमर्थ था ; या
(ग) पंचाट में ऐसे मतभेद पर विचार किया गया है जो माध्यस्थम् के लिए निवेदन के निबन्धनों द्वारा अनुध्यात नहीं है या उनके अंतर्गत नहीं आता है या इसमें माध्यस्थम् के लिए प्रस्तुत करने के विषय क्षेत्र से बाहर के विषयों पर विनिश्चय अंतर्विष्ट है :
परन्तु यदि माध्यस्थम् के लिए प्रस्तुत विषयों संबंधी विनिश्चयों को उन विषयों से संबंधित विनिश्चयों से पृथक् किया जा सकता है, जो इस प्रकार माध्यस्थम् के लिए प्रस्तुत नहीं किए गए हैं तो पंचाट के उस भाग को, जिसमें माध्यस्थम् के लिए प्रस्तुत विषयों के बारे में विनिश्चय अंतर्विष्ट है, प्रवर्तित किया जा सकेगा ; या
(घ) माध्यस्थम् प्राधिकरण का गठन या माध्यस्थम् की प्रक्रिया पक्षकारों के करार के अनुसार नहीं थी या ऐसे करार के अभाव में, उस देश की जहां माध्यस्थम् किया गया था, विधि के अनुसार नहीं थी ; या
(ङ) पंचाट अभी पक्षकारों पर आबद्धकर नहीं हुआ है, या उस देश के जिसमें या जिसकी विधि के अधीन, उस पंचाट को किया गया था सक्षम प्राधिकारी द्वारा इसे अपास्त या निलंबित किया गया है ।
(2) किसी माध्यस्थम् पंचाट का प्रवर्तन करने से उस दशा में भी इंकार किया जा सकेगा जबकि न्यायालय यह निष्कर्ष निकालता है कि-
(क) मतभेद की विषय-वस्तु का निपटारा भारत की विधि के अधीन माध्यस्थम् द्वारा नहीं किया जा सकता है ; या
(ख) पंचाट का प्रवर्तन भारत की लोक नीति के विरुद्ध होगा ।
स्पष्टीकरण-खण्ड (ख) की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, किसी शंका को दूर करने के लिए यह घोषित किया जाता है कि कोई पंचाट भारत की लोक नीति के विरुद्ध होगा यदि पंचाट का किया जाना कपट या भ्रष्टाचार द्वारा उत्प्रेरित या प्रभावित किया गया था ।
(3) यदि उपधारा (1) के खंड (ङ) में निर्दिष्ट सक्षम प्राधिकारी को पंचाट को अपास्त करने या निलंबित करने के लिए कोई आवेदन किया गया है तो न्यायालय, यदि ऐसा करना उचित समझता है पंचाट के प्रवर्तन पर विनिश्चय देना स्थगित कर सकेगा और पंचाट के प्रवर्तन का दावा करने वाले पक्षकार के आवेदन पर, दूसरे पक्षकार को उचित प्रतिभूति देने के लिए आदेश भी कर सकेगा ।
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