Section 39 Arbitration and Conciliation Act, 1996

 


Section 39  Arbitration and Conciliation Act, 1996: 


Lien on arbitral award and deposits as to costs.—

(1) Subject to the provisions of sub-section (2) and to any provision to the contrary in the arbitration agreement, the arbitral tribunal shall have a lien on the arbitral award for any unpaid costs of the arbitration.

(2) If in any case an arbitral tribunal refuses to deliver its award except on payment of the costs demanded by it, the Court may, on an application in this behalf, order that the arbitral tribunal shall deliver the arbitral award to the applicant on payment into Court by the applicant of the costs demanded, and shall, after such inquiry, if any, as it thinks fit, further order that out of the money so paid into Court there shall be paid to the arbitral tribunal by way of costs such sum as the Court may consider reasonable and that the balance of the money, if any, shall be refunded to the applicant.

(3) An application under sub-section (2) may be made by any party unless the fees demanded have been fixed by written agreement between him and the arbitral tribunal, and the arbitral tribunal shall be entitled to appear and be heard on any such application.

(4) The Court may make such orders as it thinks fit respecting the costs of the arbitration where any question arises respecting such costs and the arbitral award contains no sufficient provision concerning them.



Supreme Court of India Important Judgments And Leading Case Law Related to Section 39  Arbitration and Conciliation Act, 1996: 

Sundaram Finance Ltd.  vs Abdul Samad on 15 February, 2018




माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 39 का विवरण : 

 खर्च की बाबत माध्यस्थम् पंचाट और निक्षेप पर धारणाधिकार-(1) उपधारा (2) के उपबंधों और माध्यस्थम् करार में किसी प्रतिकूल उपबंध के अधीन रहते हुए, माध्यस्थम् अधिकरण का, माध्यस्थम् के किसी असंदत्त खर्च के लिए माध्यस्थम् पंचाट पर धारणाधिकार होगा ।

(2) यदि किसी मामले में, माध्यस्थम् अधिकरण, उसके द्वारा मांगे गए खर्च के संदाय पर के सिवाय अपना पंचाट देने से इंकार करता है तो, न्यायालय, इस निमित्त किसी आवेदन पर यह आदेश दे सकेगा कि, मांगा गया खर्च आवेदक द्वारा न्यायालय को संदाय करने पर, माध्यस्थम् अधिकरण आवेदक को माध्यस्थम् पंचाट देगा और ऐसी जांच के पश्चात्, जो वह ठीक समझे, यदि कोई हो, यह और आदेश देगा कि न्यायालय में इस प्रकार संदत्त रकम में से ऐसी राशि, जो न्यायालय ठीक समझे, खर्च के रूप में माध्यस्थम् अधिकरण को संदत्त की जाएगी तथा धन का कोई अतिशेष, यदि कोई है, आवेदक को वापस किया जाएगा ।

(3) जब तक कि मांगी गई फीस उसके और माध्यस्थम् अधिकरण के बीच लिखित करार द्वारा नियत नहीं कर दी जाती है उपधारा (2) के अधीन आवेदन, किसी पक्षकार द्वारा किया जा सकेगा तथा माध्यस्थम् अधिकरण, ऐसे किसी आवेदन पर उपसंजात होने और सुने जाने के लिए हकदार होगा ।

(4) जहां ऐसे खर्च की बाबत कोई प्रश्न उठता है और माध्यस्थम् पंचाट में उनसे संबंधित पर्याप्त उपबंध अंतर्विष्ट नहीं है वहां न्यायालय, माध्यस्थम् के खर्च की बाबत ऐसा आदेश दे सकेगा, जो वह ठीक समझे ।




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