Section 124 The Trade Marks Act, 1999

 


Section 124 The Trade Marks Act, 1999: 

Stay of proceedings where the validity of registration of the trade mark is questioned, etc.—

(1) Where in any suit for infringement of a trade mark—

(a) the defendant pleads that registration of the plaintiff’s trade mark is invalid; or

(b) the defendant raises a defence under clause (e) of sub-section (2) of section 30 and the plaintiff pleads the invalidity of registration of the defendant’s trade mark, the court trying the suit (hereinafter referred to as the court), shall,—

(i) if any proceedings for rectification of the register in relation to the plaintiff’s or defendant’s trade mark are pending before the Registrar or the Appellate Board, stay the suit pending the final disposal of such proceedings;

(ii) if no such proceedings are pending and the court is satisfied that the plea regarding the invalidity of the registration of the plaintiff’s or defendant’s trade mark is prima facie tenable, raise an issue regarding the same and adjourn the case for a period of three months from the date of the framing of the issue in order to enable the party concerned to apply to the Appellate Board for rectification of the register.

(2) If the party concerned proves to the court that he has made any such application as is referred to in clause (b) (ii) of sub-section (1) within the time specified therein or within such extended time as the court may for sufficient cause allow, the trial of the suit shall stand stayed until the final disposal of the rectification proceedings.

(3) If no such application as aforesaid has been made within the time so specified or within such extended time as the court may allow, the issue as to the validity of the registration of the trade mark concerned shall be deemed to have been abandoned and the court shall proceed with the suit in regard to the other issues in the case.

(4) The final order made in any rectification proceedings referred to in sub-section (1) or sub-section (2) shall be binding upon the parties and the court shall dispose of the suit conformably to such order in so far as it relates to the issue as to the validity of the registration of the trade mark.

(5) The stay of a suit for the infringement of a trade mark under this section shall not preclude the court from making any interlocutory order (including any order granting an injunction directing account to be kept, appointing a receiver or attaching any property), during the period of the stay of the suit.



Supreme Court of India Important Judgments And Leading Case Law Related to Section 124 The Trade Marks Act, 1999: 

Patel Field Marshal Agencies And  vs P.M Diesels Ltd. And Ors. on 29 November, 2017

Supreme Court of India Cites 25 - Cited by 0 - Full Document

Jagatjit Industries Limited vs The Intelectual Prop Appellate  on 20 January, 2016

Supreme Court of India Cites 38 - Cited by 0 - Full Document

Dr. Aloys Wobben And Another vs Yogesh Mehra And Others on 2 June, 2014

Supreme Court of India Cites 25 - Cited by 2 - Full Document

Bhavanesh Mohanlal Amin And Anr vs Nirma Chemicals Works And Anr on 7 November, 2005

Supreme Court of India Cites 9 - Cited by 4 - Full Document




व्यापार चिह्न अधिनियम, 1999 की धारा 124 का विवरण : 

जहां व्यापार चिह्न के रजिस्ट्रीकरण की विधिमान्यता प्रश्नगत की जाती है वहां कार्यवाहियों का रोका जाना, आदि-(1) जहां किसी व्यापार चिह्न के अतिलंघन के लिए किसी वाद में-

 (क) प्रतिवादी यह अभिवचन करता है कि वादी के व्यापार चिह्न का रजिस्ट्रीकरण अविधिमान्य है; या

 (ख) प्रतिवादी धारा 30 की उपधारा (2) के खण्ड (ङ) के अधीन प्रतिवाद करता है और वादी प्रतिवादी के व्यापार चिह्न के रजिस्ट्रीकरण की अविधिमान्यता का अभिवचन करता है,

वहां वाद का विचारण करने वाला न्यायालय (जिसे इसमें इसके पश्चात् न्यायालय कहा गया है)-

(i) यदि वादी या प्रतिवादी के व्यापार चिह्न के संबंध में रजिस्टर के परिशोधन के लिए कोई कार्यवाहियां रजिस्ट्रार या अपील बोर्ड के समक्ष लंबित हैं, तो ऐसी कार्यवाहियों के अंतिम निपटारे के लम्बित रहने तक वाद को रोक देगा;

(ii) यदि कोई ऐसी कार्यवाहियां लंबित नहीं हैं और न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि वादी या प्रतिवादी के व्यापार चिह्न के रजिस्ट्रीकरण की अविधिमान्यता के बारे में अभिवचन प्रथमदृष्ट्या मान्य है तो उनके बारे में विवाद्यक बनाएगा और मामले को विवाद्यक बनाने की तारीख से तीन मास की अवधि के लिए स्थगित कर देगा जिससे कि संबद्ध पक्षकार रजिस्टर के परिशोधन के लिए अपील बोर्ड को आवेदन करने में समर्थ हो सके ।

(2) यदि संबद्ध पक्षकार न्यायालय में यह साबित करता है कि उसने उपधारा (1) के खंड (ख) (ii) में निर्दिष्ट ऐसा कोई आवेदन उसमें विनिर्दिष्ट समय के भीतर या ऐसे विस्तारित समय के भीतर जो न्यायालय पर्याप्त कारण से अनुज्ञात करे, किया है, तो जब तक परिशोधन की कार्यवाहियों का अंतिम निपटान न हो जाए तब तक वाद का विचारण रुक जाएगा ।

(3) यदि यथापूर्वोक्त कोई ऐसा आवेदन ऐसे विनिर्दिष्ट समय के भीतर या ऐसे विस्तारित समय के भीतर जो न्यायालय अनुज्ञात करे, नहीं किया गया है, तो संबद्ध व्यापार चिह्न के रजिस्ट्रीकरण की विधिमान्यता के बारे में विवाद्यक परित्यक्त समझा जाएगा और न्यायालय मामले में अन्य विवाद्यकों की बाबत वाद में आगे कार्यवाही करेगा ।

(4) उपधारा (1) या उपधारा (2) में निर्दिष्ट परिशोधन कार्यवाहियों में दिया गया अंतिम आदेश पक्षकारों पर आबद्धकर होगा और जहां तक वह व्यापार चिह्न के रजिस्ट्रीकरण की विधिमान्यता के बारे में विवाद्यक से संबंधित है, न्यायालय वाद को ऐसे आदेश के अनुरूप निपटाएगा ।

(5) इस धारा के अधीन व्यापार चिह्न के अतिलंघन के किसी वाद को रोकने से न्यायालय वाद के रुके रहने की अवधि के दौरान (व्यादेश अनुदत्त करने वाले, लेखा रखने का निदेश देने वाले, रिसीवर नियुक्त करने वाले या संपत्ति कुर्क करने वाले किसी आदेश सहित) कोई अर्न्तवर्ती आदेश करने से प्रविरत नहीं होगा ।



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