Section 403 IPC in Hindi and English
Section 403 IPC in Hindi and English
Section 403 of IPC 1860:- Dishonest misappropriation of property –
Whoever dishonestly misappropriates or converts to his own use any movable property, shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to two years, or with fine, or with both
Illustrations -
(a) A takes properly belonging to Z out of Z's possession, in good faith, believing, at the time when he takes it, that the property belongs to himself. A is not guilty of theft; but if A, after discovering his mistake, dishonestly appropriates the property to his own use, he is guilty of an offence under this section.
(b) A, being on friendly terms with to Z's library in Z's absence, and takes away a book without Z's express consent. Here, if A was under the impression that he had Z's implied consent to take the book for the purpose of reading it, A has not committed theft. But, if A afterwards sells the book for his own benefit, he is guilty of an offence under this section.
(c) A and B, being joint owners of a horse, A takes the horse out of B's possession, intending to use it. Here, as A has a right to use the horse, he does not dishonestly misappropriate it. But, if A sells the horse and appropriates the whole proceeds to his own use, he is guilty of an offence under this section.
Explanation 1 - A dishonest misappropriation for a time only is a misappropriation with the meaning of this section.
Illustrations -
A finds a Government promissory note belonging to Z, bearing a blank endorsement. A, knowing that the note belongs to Z, pledges it with a banker as a security for a loan, intending at a future time to restore it to Z. A has committed an offence under this section.
Explanation 2 — A person who finds property not in the possession of any other person, and takes such property for the purpose of protecting it for, or of restoring it to, the owner, does not take or misappropriate it dishonestly, and is not guilty of an offence; but he is guilty of the offence above defined, if he appropriates it to his own use, when he knows or has the means of discovering the owner, or before he has used reasonable means to discover and give notice to the owner and has kept the property a reasonable time to enable the owner to claim it.
What are reasonable means or what is a reasonable time in such a case, is a question of fact.
It is not necessary that the finder should know who is the owner of the property, or that any particular person is the owner of it; it is sufficient if, at the time of appropriating it, he does not believe it to be his own property, or in good faith believe that the real owner cannot be found.
Illustrations -
(a) A finds a rupee on the high road, not knowing to whom the rupee belongs. A picks up the rupee. Here A has not committed the offence defined in this section.
(b) A finds a letter on the road, containing a banknote. From the direction and contents of the letter he learns to whom the note belongs. He appropriates the note. He is guilty of an offence under this section.
(c) A finds a cheque payable to bearer. He can form no conjecture as to the person who has lost the cheque. But the name of the person, who has drawn the cheque, appears. A knows that this person can direct him to the person in whose favour the cheque was drawn. A appropriates the cheque without attempting to discover the owner. He is guilty of an offence under this section.
(d) A sees Z drop his purse with money in it. A picks up the purse with the intention of restoring it to Z, but afterwards appropriates it to his own use. A has committed an offence under this section.
(e) A finds a purse with money, not knowing to whom it belongs; he afterwards discovers that it belongs to Z, and appropriates it to his own use. A is guilty of an offence under this section.
(f) A finds a valuable ring, not knowing to whom it belongs. A sells it immediately without attempting to discover the owner. A is guilty of an offence under this section.
Supreme Court of India Important Judgments And Case Law Related to Section 403 of Indian Penal Code 1860:
Ramaswamy Nadar vs The State Of Madras on 11 October, 1957
Udai Shankar Awasthi vs State Of U.P.& Anr on 9 January, 2013
U. Dhar & Anr vs The State Of Jharkhand & Anr on 20 January, 2003
Kotak Mahindra Bank Ltd vs Hindustan National Glass & on 11 December, 2012
Ram Narain Popli vs Central Bureau Of Investigation on 14 January, 2003
Ramekbal Tiwary vs Madan Mohan Tiwary & Anr on 17 January, 1967
Mohammad Safi vs The State Of West Bengal on 25 March, 1965
Velji Raghavji Patel vs State Of Maharashtra on 11 December, 1964
Kunjilal And Another vs The State Of Madhya Pradesh on 8 October, 1954
Superintendent & Rememberancer vs S. K. Roy on 12 February, 1974
आईपीसी, 1860 (भारतीय दंड संहिता) की धारा 403 का विवरण - संपत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग -
जो कोई बेईमानी से किसी जंगम संपत्ति का दुर्विनियोग करेगा या उसको अपने उपयोग के लिए संपरिवर्तित कर लेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
दृष्टांत -
(क) क, य की संपत्ति को उस समय जबकि क उस संपत्ति को लेता है, यह विश्वास रखते हुए कि वह संपत्ति उसी की है, य के कब्जे में से सद्भावपूर्वक लेता है। क, चोरी का दोषी नहीं है। किन्तु यदि क अपनी भूल मालूम होने के पश्चात् उस संपत्ति का बेईमानी से अपने लिए विनियोग कर लेता है, तो वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है।
(ख) क, जो य का मित्र है, य की अनुपस्थिति में य के पुस्तकालय में जाता है और य की अभिव्यक्त सम्मति के बिना एक पुस्तक ले जाता है। यहां, यदि क का यह विचार था कि पढ़ने के प्रयोजन के लिए पुस्तक लेने की उसको य की विवक्षित सम्मति प्राप्त है, तो क ने चोरी नहीं की है। किन्तु यदि क बाद में उस पुस्तक को अपने फायदे के लिए बेच देता है, तो वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है।
(ग) क और ख एक घोड़े के संयुक्त स्वामी हैं। क उस घोड़े को उपयोग में लाने के आशय से ख के कब्जे में से उसे ले जाता है। यहां, क को उस घोडे को उपयोग में लाने का अधिकार है, इसलिए वह उसका बेईमानी से दुर्विनियोग नहीं है। किन्तु यदि क उस घोड़े को बेच देता है, और संपूर्ण आगम का अपने लिए विनियोग कर लेता है, तो वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है।
स्पष्टीकरण 1 - केवल कुछ समय के लिए बेईमानी से दुर्विनियोग करना इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत दुर्विनियोग है।
दृष्टांत -
क को य का एक सरकारी वचन पत्र मिलता है, जिस पर निरंक पृष्ठांकन है। क, यह जानते हुए कि वह वचनपत्र य का है; उसे ऋण के लिए प्रतिभूति के रूप में बैंकार के पास इस आशय से गिरवी रख देता है कि वह भविष्य में उसे य को प्रत्यावर्तित कर देगा। क ने इस धारा के अधीन अपराध किया है।
स्पष्टीकरण 2 - जिस व्यक्ति को ऐसी संपत्ति पड़ी मिल जाती है, जो किसी अन्य व्यक्ति के कब्जे में नहीं है।और वह उसके स्वामी के लिए उसको संरक्षित रखने या उसके स्वामी को उसे प्रत्यावर्तित करने के प्रयोजन से ऐसी संपत्ति को लेता है, वह न तो बेईमानी से उसे लेता है और न बेईमानी से उसका दुर्विनियोग करता है, और किसी अपराध का दोषी नहीं है, किन्तु वह ऊपर परिभाषित अपराध का दोषी है, यदि वह उसके स्वामी को जानते हुए या खोज निकालने के साधन रखते हुए अथवा उसके स्वामी को खोज निकालने और सूचना देने के युक्तियुक्त साधन उपयोग में लाने और उसके स्वामी को उसकी मांग करने को समर्थ करने के लिए उस संपत्ति को युक्तियुक्त समय तक रखे रखने के पूर्व उसको अपने लिए विनियोजित कर लेता है।
ऐसी दशा में युक्तियुक्त साधन क्या है, या युक्तियुक्त समय क्या है, यह तथ्य का प्रश्न है।
यह आवश्यक नहीं है कि पाने वाला यह जानता हो कि संपत्ति का स्वामी कौन है या यह कि कोई विशिष्ट व्यक्ति उसका स्वामी है। यह पर्याप्त है कि उसको विनियोजित करते समय उसे यह विश्वास नहीं है कि वह उसकी अपनी संपत्ति है, या सद्भावपूर्वक यह विश्वास है कि उसका असली स्वामी नहीं मिल सकता।
दृष्टांत -
(क) क को राजमार्ग पर एक रुपया पड़ा मिलता है। यह न जानते हुए कि वह रुपया किसका है क उस रुपए को उठा लेता है। यहां क ने इस धारा में परिभाषित अपराध नहीं किया है।
(ख) क को सड़क पर एक चिट्ठी पड़ी मिलती है, जिसमें एक बैंक नोट है। उस चिट्ठी में दिए हुए निर्देश और विषयवस्तु से उसे ज्ञात हो जाता है कि वह नोट किसका है। वह उस नोट का विनियोग कर लेता है। वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है।
(ग) वाहक-देय एक चेक क को पड़ा मिलता है। वह उस व्यक्ति के संबंध में जिसका चेक खोया है, कोई अनुमान नहीं लगा सकता, किन्तु उस चेक पर उस व्यक्ति का नाम लिखा है, जिसने वह चेक लिखा है। क यह जानता है कि वह व्यक्ति क को उस व्यक्ति का पता बता सकता है जिसके पक्ष में वह चेक लिखा गया था, क उसके स्वामी को खोजने का प्रयत्न किए बिना उस चेक का विनियोग कर लेता है। वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है। |
(घ) क देखता है कि य की थैली, जिसमें धन है, य से गिर गई है। क वह थैली य को प्रत्यावर्तित करने के आशय से उठा लेता है। किन्तु तत्पश्चात् उसे अपने उपयोग के लिए विनियोजित कर लेता है। क ने इस धारा के अधीन अपराध किया है।
(ङ) क को एक थैली, जिसमें धन है, पड़ी मिलती है। वह नहीं जानता है कि वह किसकी है। उसके पश्चात् उसे यह पता चल जाता है कि वह य की है, और वह उसे अपने उपयोग के लिए विनियुक्त कर लेता है। क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है।
(च) क को एक मूल्यवान अंगूठी पड़ी मिलती है। वह नहीं जानता है कि वह किसकी है। क उसके स्वामी को खोज निकालने का प्रयत्न किए बिना उसे तुरन्त बेच देता है। क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है।
To download this dhara of IPC in pdf format use chrome web browser and use keys [Ctrl + P] and save as pdf.
Comments
Post a Comment