भारत के संविधान के अनुच्छेद 333 के बारे में सब कुछ

 आज कल मैं देखता हूँ की काफी लोग मेरे यूट्यूब चैनल जो की इंडियन कंस्टीटूशन के नाम से है उस पर अनुच्छेद 333 के बारे में सर्च करते हैं और उसके बारे में जानना चाहते है।  क्या है भारत के संविधान का अनुच्छेद 333 ? लोग यही जानना चाहते हैं।  इंटरनेट और खासकर फेसबुक तथा यूट्यूब पर कुछ ऐसे वीडियो अनुच्छेद 333 के बारे में आपको मिलते हैं जो बोलते हैं की अनुच्छेद 370 तो संविधान से ख़त्म हो गया अब अनुच्छेद 333 को ख़त्म किया जाना चाहिए।  अब इस आर्टिकल में ऐसा क्या है की कुछ लोग इसे हटाना चाहते हैं। 


पहले तो मैं आपको ये बताना चाहता हूँ की अनुच्छेद 333 जिसे कुछ लोग धारा 333 के नाम से भी जानते हैं ये भारतीय संविधान का एक अनुच्छेद है जिसमे ये कहा गया है की अगर किसी राज्य की विधान सभा में एंग्लो इंडियन समाज के लोगों का सही से प्रतिनिधित्व नहीं है तो राजयपाल उस राज्य की विधानसभा में एंग्लो इंडियन कम्युनिटी के सदस्य को नामित कर सकता है।  तो संविधान की धारा 333 में केवल यही है। जो लोग इसे हटाना चाहते हैं शायद वो ये नहीं जानते की 25 जनवरी 2020 को भारत के संविधान से अनुच्छेद 333 ख़त्म हो चुका है।  अनुच्छेद 331 राष्ट्रपति के द्वारा लोकसभा में एंग्लो इंडियन कम्युनिटी के दो सदस्यों को नामित करने के बारे में हैं।  भारत के संविधान में अब अनुच्छेद 331 तथा 333 दिखाई तो देते हैं लेकिंग भारतीय संविधान के 104वें संशोधन के बाद इनका अस्तित्व ख़त्म हो गया है।  


जो लोग इस अनुच्छेद को हटवाना चाहते थे उनका यही मत था की भारत में एंग्लो इंडियन कम्युनिटी केवल नाम मात्र है फिर भी इनसे स्पेशल प्रोटेक्शन तथा विशेष अधिकार क्योँ? उनका ये भी मानना रहा है की भारत के संविधान में ऐसे प्रोविज़न केवल अंग्रेजों के दबाव में रखे गए।  अब चूँकि 104वें संविधान संशोधन के द्वारा जब अनुसूचित जाती तथा अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को भारत के संविधान के लागु होने के  70 साल से 80 साल तक के लिए बढ़ाया गया तब अनुच्छेद 331 तथा 333 के प्रावधानों को नहीं बढ़ाया गया।  यानि की 25 जनवरी 2020 से अनुच्छेद 331 तथा 333 संविधान में रहते हुए भी उनका प्रभाव ख़त्म हो गया।  ऐसे ही संविधान में कुछ और भी प्रावधान हैं  जैसे की अनुच्छेद 369 तथा अनुच्छेद 370 जो की संविधान में दिखाई तो देते हैं लेकिन अब उनका प्रभाव ख़त्म हो गया है।  हो सकता हैं संसद को जब कभी भविष्य में जरुरी लगेगा तो किसी संविधान संशोधन करते हुए इनके टेक्स्ट को भी संविधान से हटा दे। 

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