Preamble of Indian Constitution in Hindi

 

Preamble of Indian Constitution in Hindi

उद्देशिका : संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई और कुछ दिन पश्चात 13 दिसंबर को उद्देश्य संकल्प प्रस्तावित हुआ| इस संकल्प द्वारा संविधान सभा के लक्ष्य और प्रयोजन परिनिश्चित किए गये| इस संकल्प में जो मूल आकांक्षाएं थी वह उद्देशिका में थोड़े से शब्दों में बड़ी सुंदरता के साथ अभिव्यक्त हुई है|

उद्देशिका इस प्रकार है-

हम, भारत के लोग , भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व- संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को:

 समाजिक, आर्थिक और राजनीतिक, न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समानता प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए

 सुदृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949ई० को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मापिर्त  करते हैं|

इस उद्देशिका का 1976 में संशोधन किया गया| पहले पैरा के दो शब्द समाजवादी और पंथनिरपेक्ष अंतः स्थापित किए गए| छठे पैरा में और अखंडता शब्द जोड़े गए|


उद्देशिका में जनता की भावनाएं और आकांक्षाएं सूक्ष्म रूप में समाविष्ट हैं| संविधान के निर्माताओं के विचारों को जानने के लिए यह एक कुंजी है| इसमें उन उद्देश्यों का कथन है जिन्हें संविधान विस्थापित करना चाहता है और आगे बढ़ाना चाहता है| उद्देशिका संविधान के विधिक निर्वाचन में सहायक है जिसके दो मुख्य प्रयोजन हैं 

(क) इससे यह प्रकट होता है कि संविधान के प्राधिकार का स्रोत क्या है

(ख) इसमें भी उद्देश्य प्रतिष्ठित है जिन्हें संविधान स्थापित करना और आगे बढ़ाना चाहता है


यज्ञ माना जाता है कि किसी भी अधिनियम के अर्थ को खोलने के लिए उद्देशिका कुंजी का काम करती है फिर भी साधारणतया यह माना जाता है कि उद्देशिका संविधान का भाग नहीं है| बीरूबारी में उच्चतम न्यायालय ने उद्देशिका को संविधान का अंग मानने से इनकार कर दिया था| पिंटू केसवानंद में न्यायालय ने अपने निर्णय को उलटते हुए या कहा कि उद्देशिका संविधान का भाग है क्योंकि जब अन्य सभी उपबंध अधिनियमित किए जा चुके थे उसके पश्चात उद्देशिका को अलग से पारित किया गया|


उद्देशिका को संविधान के भाग के रूप में मान्यता दिए जाने से संविधान के निर्वाचन में सहायक के रूप में उसका महत्व बढ़ गया है| किंतु इस संबंध में निम्नलिखित प्रस्थापना है लागू होंगी -

(क) उद्देशिका शक्ति का स्रोत नहीं है| शक्ति का आधार कोई विनिर्दिष्ट उपबंध ही हो सकता है|

(ख) उद्देशिका को विधानमंडल की शक्तियों पर प्रतिबंध या मर्यादा लगाने के लिए स्रोत नहीं बनाया जा सकता है|

(ग) जहां किसी अनुच्छेद के शब्दों का अर्थ संदिग्ध है या उसके दो अर्थ हो सकते हैं वहां उसका सही अर्थ ज्ञात करने के लिए उद्देशिका में स्थापित उद्देश्य से कुछ सहायता ली जा सकती है|


हम भारत के लोग, इन शब्दों से उप दर्शित होता है कि भारत एक प्रजातंत्र है| इसका यह अर्थ हुआ कि यहां कोई अनुवंशिक शासक नहीं होता  और जनता अपनी सरकार स्वयं सुनेगी| विधानमंडल निर्वाचित होंगे और प्रजातंत्र का राष्ट्रपति भी निर्वाचित होगा| प्रजातंत्र की परंपरा हमारे देश के लिए नई नहीं है इतिहास के प्रारंभ से हमें प्रजातंत्र का ज्ञान रहा है| महाभारत में अनेक  गणों का उल्लेख आता है| भगवान बुध कपिलवस्तु के गणराज्य के सदस्य थे| 

इन शब्दों से यह भी पता चलता है कि यह संविधान जनता से अधिनियमित किया है| इसके पहले 1935 का अधिनियम और उसके पूर्वर्ती अधिनियम ब्रिटेन ने पारित किए थे|


डॉ राजेंद्र प्रसाद ने जो वर्णन किया वह सब प्रभुत्व संपन्न निकाय के लक्षण हैं| ऐसा निकाय किसी नियंत्रण या मर्यादा को नहीं मानता| प्रजातंत्र द्वारा जिस संविधान का सृजन किया गया है वह प्रभुत्व संपन्न है| उसके ऊपर कोई प्राधिकारी नहीं है| यह पूर्णतया स्वतंत्र है|

लोकतंत्र शासन का एक ढंग है जिसमें विचार विमर्श और अनुनय से सरकार चलाई जाती है| लोकतंत्र का केंद्र है विकल्प| विभिन्न व्यक्तियों या समूह द्वारा बहुत से प्रत्यय या कार्य की दिशाएं प्रस्तावित की जाती हैं| यह समूह एकत्र होकर ऐसा निष्कर्ष निकालना चाहते हैं जो सभी या अधिकांश समूह को स्वीकार्य हो| लोकतंत्र किसी एक विचार को लेकर नहीं चलता| कोई एक वाद, समाजवाद, समूहवाद ,पूंजीवाद लोकतंत्र का आधार नहीं हो सकता| लोकतांत्रिक समाज सदैव नए प्रत्यय और नए दृष्टिकोण ग्रहण करता है| वह एकाधिक विचारों को ग्रहण करता है और उनकी परस्पर तुलना करके उनके भेद को कम करते हुए तथा उनका संयोजन करके सहमति के आधार पर एक मार्ग चुनता है| इसीलिए लोकतंत्र एक प्रक्रिया है जिससे राज्य अपने उद्देश्य का चयन करता है| एक अन्य दृष्टिकोण से देखा जाए तो लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक को अपने देश के शासन में भाग लेने का अधिकार है| ऐसे समाज में जो राजनीति की दृष्टि से गठित है राजनीतिक विचार प्रकट करना देश के शासन में भाग लेने का प्राण है| अब्राहम लिंकन ने गेटिसबर्ग में दिए गए अपने प्रसिद्ध भाषण में कहा था कि लोकतंत्र जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन है| प्रतिनिधिक लोकतंत्र का सुंदर और सटीक वर्णन है|

लोकतंत्र इससे कुछ अधिक है| वह केवल राजनीतिक नहीं है, समाजिक भी है| इसमें केवल लोकतांत्रिक सरकार की ही कल्पना नहीं है बल्कि ऐसे समाज की कल्पना है जिसमें विचारों का मुक्त आदान-प्रदान हो और प्रत्येक व्यक्ति की समाज में सम्मान प्रतिष्ठा हो|

भारत में राजनीतिक और सामाजिक दोनों प्रकार का लोकतंत्र है| इसका साक्षी है सार्वभौम मताधिकार, निर्वाचित सदन के प्रति मंत्रिमंडल का उत्तरदायित्व सभी नागरिकों की समानता और एक ही निर्वाचक नामावली का होना|

गणराज्य में सभी पद नागरिकों द्वारा प्राप्त किए जा सकते हैं| इसमें शिखर पद अर्थात राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद भी सम्मिलित है| किसी भी नागरिक के किसी भी लोग पद पर निर्वाचित होने पर कोई प्रतिबंध नहीं है| इसका यह अर्थ भी है कि संविधान के अधीन सभी प्राधिकार ओं का स्रोत भारत के लोग हैं कोई आनुवंशिक शासक नहीं|

संविधान सभा ने जो उद्देशिका अधिनियमित की थी उसमें समाजवादी शब्द नहीं था यह शब्द 42 में संशोधन द्वारा 3-1-1977 को जोड़ा गया

संविधान सभा में नेहरू जी ने कहा था

" मैं समाज का पक्षधर हूं और आशा करता हूं कि भारत समाजवाद का पक्ष लेगा और भारत एक समाजवादी राज्य के गठन के लिए कदम उठाएगा"

किंतु उद्देशिका में समाजवादी शब्द नहीं था क्योंकि संविधान देश को किसी विशिष्ट आर्थिक संरचना के साथ प्रतिबद्ध नहीं करता| इसलिए जानबूझकर समाजवादी शब्द का प्रयोग नहीं किया गया| यदि राज्य की नीति के निर्देशक तत्वों में बहुत सी समाजवादी धारणाएं सम्मिलित की गई|

संविधान भावी सरकारों के लिए अधिरचना है| उसमें ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए जो देश को किसी विशिष्ट अर्थव्यवस्था के साथ बांध कर रखे| भाभी सांसदों को यह छूट होनी चाहिए कि वे ऐसी आर्थिक नीतियां बनाए जो उपयुक्त हो| संविधान इस प्रकार का हो कि भविष्य में आने वाली संसद स्वतंत्रता पूर्वक काम कर सके| किसी विशेष राजनीति कार्य सूची का बंधन संसद बना हो| सभी सांसदों को विद्यमान परिस्थितियों में सोच विचार करके सबसे उत्तम मार्ग स्वीकार करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए|

संविधान निर्माताओं के दृष्टिकोण की उपेक्षा करते हुए आपात के दौरान संविधान का संशोधन करके उद्देशिका में समाजवाद शब्द डाला गया| किंतु जिस दल की सरकार ने यह संशोधन किया था( कॉन्ग्रेस) उसी दल की सरकार ने 15 वर्ष के भीतर अपनी आर्थिक नीति उलट दी| राज्य के स्वामित्व के स्थान पर निजीकरण की नीति अपनाई गई| लोक स्वामित्व और उत्पादन और वितरण के साधनों का नियंत्रण समाप्त कर दिया गया| सार्वजनिक सेक्टर को बेचने की तैयारी प्रारंभ हो गई| निजी क्षेत्र को स्वागत योग्य समझा जाने लगा|

वे सभी लोग जो आज संविधान के प्रति श्रद्धा और निष्ठा की शपथ लेते हैं संविधान के 1 भाग का अनादर करते हैं| वे प्रारंभ के दिन से ही अपने शपथ भाग करते हैं| संविधान के निर्माताओं ने जो उत्तम दृष्टांत हमारे सामने रखा था उसकी उपेक्षा करना बुद्धिमानी नहीं थी| किसी भी दल के नारे को संविधान में स्थान देना कभी उचित नहीं हो सकता|

पंथनिरपेक्ष शब्द 1977 में समाजवादी शब्द के साथ उद्देशिका में अंत: स्थापित किया गया था| इस विधि से संविधान ऐसा दिखाई पड़ने लगा मानो किसी राजनीतिक दल का घोषणा पत्र हो| सविधान के द्वारा किसी मत या पंथ को राज्य का पंथ घोषित नहीं किया गया है| संविधान में सभी व्यक्तियों को समान व्यवहार की प्रत्याभूति दी गई है| धर्म के आधार पर भेदभाव का प्रतिषेध किया गया है| धर्म की स्वतंत्रता को मूल अधिकार के रूप में संरक्षण दिया गया है अब संतो के प्रतीक अधिकारों को विशेष रूप से मूल अधिकारों की सूची में सम्मिलित किया गया है| यदि जनता के किसी भाग को इस विषय में कुछ आशंकाएं थी तो उन्हें दूर करने के लिए यह पर्याप्त था|

पंथनिरपेक्ष शब्द को उद्देशिका में स्थान देने से भ्रम उत्पन्न हो गया| इस अवसर का लाभ उठाकर राजनीतिक दलों ने पंथनिरपेक्षता की अपनी-अपनी परिभाषाएं गढ़ ली है| कुछ राजनीति को दोनों का यह कहना है कि यदि कोई बात किसी समुदाय को प्रतिक्रिया अच्छी नहीं लगती है तो राज्य को चाहिए कि वह सत्य को छुपाए| कुछ अन्य दल अल्पसंख्यकों को बहुत से मामलों में वीटो का अधिकार देते हैं| जिस बात का अल्पसंख्यक अनुमोदन ना करें वह पंथनिरपेक्ष नहीं है| कुछ दल ऐसा मानते हैं कि धर्म के प्रति शत्रु भाव रखना ही पर निरपेक्षता की आस्था है|

उच्चतम न्यायालय ने मोबाइल और संस्कृत शिक्षा मामले में कुछ भ्रातियों के निवारण का प्रयत्न किया है| किंतु इस शब्द को सम्मिलित करने के कारण जो भ्रातियां उत्पन्न हुई हैं वे बनी हुई है| राजनीतिक लाभ के लिए संविधान में छेड़छाड़ नहीं किया जाना चाहिए| इससे राज्य व्यवस्था को चोट पहुंचती है| डॉक्टर दुर्गा दास बसु ने इस संशोधन के संबंध में कहा था कि इससे भ्रांतियां अधिक उत्पन्न हुई है लाभ कम हुआ है|

42 वें संशोधन अधिनियम के पहले भी उच्चतम न्यायालय ने यह संप्रेक्षण किया था की पंथनिरपेक्षता संविधान का आधारभूत लक्षण है|

यह संप्रेषण संविधान में उस समय अंतर्वस्तु उपबंधों के आधार पर किया गया था| यह निर्वाचन का सुविख्यात नियम है कि यदि कोई बात संविधान के प्रतिकूल है तो उद्देशिका के प्रति निर्देशक से उसे न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता|

1977 में जनता सरकार ने एक समिति बनाई| इस समिति को आपात के दौरान किए गए संशोधन पर विशेषता 42 वें संशोधन के निरसन के लिए संविधान विधायक पर विचार करने का काम सौंपा गया था| इस समिति में गृह मंत्री, शिक्षा मंत्री, सूचना और प्रसारण मंत्री और विधि मंत्री थे| समिति ने इस प्रस्ताव पर विचार करने की क्या पंथनिरपेक्ष और समाजवादी शब्दों का लोप कर दिया जाए  यह मत व्यक्त किया कि इन अभी व्यक्तियों के साथ कुछ भावनाएं जुड़ी है इसीलिए इन्हें यथावत रहने दिया जाए|

पंथनिरपेक्षता का जन्म राज्य द्वारा कुछ ऐसे संप्रदायों के विरुद्ध जो राज्य को स्वीकार करते थे अत्याचार और विनाश के कार्यों से हुआ| फ्रांस में जब लंबी अवधि तक रक्त बहता रहा और बड़ी संख्या में लोग मरे तब पंथनिरपेक्षता की संकल्पना का जन्म हुआ| इसका लक्ष्य था राज्य और चर्च को अलग अलग रखना| हिंदुओं में धार्मिक सत्ता का कोई प्रतिष्ठान नहीं है अर्थात धार्मिक सत्ता किसी व्यक्ति पद्य संस्था में नहीं होती| राज्य पंथनिरपेक्ष होता है| इस्लाम में राज्य और धर्म संयुक्त हैं| इसीलिए एकाध अपवाद छोड़ दें तो जहां जहां मुसलमान बहुमत में है उन सभी राज्यों को इस्लामी राज्य घोषित किया गया है|


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