एफ आई आर के उपरांत पुलिस के कर्तव्य | Duties and Responsibilities of Police after registration of FIR
एफ आई आर के उपरांत पुलिस के कर्तव्य | Duties and Responsibilities of Police after registration of FIR:
संज्ञेय और असंज्ञे अपराधों व मामलों की पुलिस को सूचना में हमने जाना किए अपराधी मामले दो प्रकार के हो सकते हैं_ एक वाह जिसमें कोई संज्ञेय अपराध हुआ हो और दूसरे वह जो केवल और असंज्ञेय अपराध से समृद्ध हो| पुलिस के लिए दोनों ही मामलों की रिपोर्ट दर्ज कराना जरूरी है संज्ञेय मामलों मैं पुलिस प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करेगी और विशेषण भी आरंभ करेंगी| प्रत्येक ऐसे संज्ञेय मामले मैं जो उस पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में घटित हुआ है उस थाने का धार साधक अन्वेषण आरंभ कर सकता है और उसके अन्वेषण आरंभ करने में यह आपत्ति नहीं की जा सकती कि उससे उस मामले के अन्वेषण का अधिकार नहीं था| द0 प्र0सं0 की धारा 190 के अंतर्गत शक्ति प्राप्त मजिस्ट्रेट भी पुलिस आने के बाद साधक अधिकारी को किसी मामले का अन्वेषण का करने का आदेश दे सकता है|
यदि किसी पुलिस थाने के भार अधिकारी के पास यह संदेह करने का कारण है कि कोई संज्ञेय श्राद्ध किया गया है का अन्वेषण करने के लिए वह धारा 156 के अंतर्गत सक्षम है तो धारा 157 के अंतर्गत उनकी रिपोर्ट तत्काल उस मजिस्ट्रेट को प्रेषित करेगा जो उस मामले का संज्ञान करने के लिए सक्षम है| मामले के तथ्यों और परिस्थितियों का अन्वेषण करने के लिए और यदि आवश्यक हो तो अपराधी का पता लगाने और उसकी गिरफ्तारी के उपाय करने के लिए उपयुक्त स्थान पर या तो खुद जाएगा या अपने किसी अधीनस्थ अधिकारी को भेजेगा जो राज्य सरकार द्वारा इस कार्य के लिए निर्धारित कम_ से कॉम न्यूनतम रैंक का हो|
लेकिन जब उस व्यक्ति का नाम लेकर रिपोर्ट की गई है जिसने अपराध किया है तो उसका या किसी अधीनस्थ अधिकारी का वहां जाना आवश्यक नहीं होगा| यदि पुलिस थाने के भार साधक अधिकारी को विश्वास हो जाए की अन्वेषण के लिए प्राप्त आधार नहीं है तो वह उस मामले में अन्वेषण नहीं करेगा| लेकिन ऐसी स्थिति मैं अपराध की सूचना देने वाले व्यक्ति को सूचित किया जाएगा कि मामला अन्वेष योग्य नहीं है| धारा के 157 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट को भेजे जाने वाली रिपोर्ट किसी ऐसे वरिष्ठ अधिकारी के माध्यम से भेजी जाएगी जिसे राज्य सरकार विहित करें ऐसा वरिष्ठ अधिकारी पुलिस थाने के बाहर साधक अधिकारी को उचित अनुदेश दे सकता है और उस रिपोर्ट पर अनुदेश लिखने के उपरांत तुरंत मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करेगा|
ऐसी रिपोर्ट आने पर धारा 159 के अंतर्गत अन्वेषण करने के लिए आदेश दे सकता है| यदि वह द0प्र0स0 के अंतर्गत उप बंधित रीति से मामले की प्रारंभिक जांच करने के लिए या उसे निपटाने के लिए तुरंत कार्यवाही कर सकता है या अपने किसी अधीनस्थ मजिस्ट्रेट को कार्यवाही करने के लिए प्रतिनियुक्त कर सकता है|
जमानत देते समय जमानती का एक शपथ पत्र इस आशय का भी लिखा जाना है कि उसकी आर्थिक हैसियत कितनी है? आजकल कुछ_ न_ कुछ दस्तावेज जमानती को इस बात का भी दिखाना पड़ता है जिससे यह पता लग सके कि उसकी आर्थिक हैसियत क्या है? इसके लिए जमानती के मकान या जमीन के दस्तावेज या किसी वाहन के स्वामित्व के दस्तावेज देख कर संतुष्ट हो जाती है कि जमानती प्राप्त राशि की जमानत देने लायक है| इसके अतिरिक्त अदालत आजकल जमानती की फोटो आईडी अर्थात सचित्र परिचय पत्र भी देखती है कि वास्तव में जमानत देने वाला व्यक्ति वही तो है जो वह स्वयं को घोषित कर रहा है| जोरासी जमानत– पत्र में भरी जाती है उसे जमानती को देख लेना चाहिए जिससे उसे पता रहे कि उसने कितनी राशि की जमानत दी है| क्योंकि यह राशि अक्सर जमानत प्रपत्र को भरते समय पता नहीं और अदालत समय आने पर बताती है | तब इस बात की तसल्ली कर लेनी चाहिए कि इतनी राशि की जमानत आप दे रहे हैं| किसी राशि विशेष की जमानत देने का अर्थ है कि आप थाने को या अदालत को यह आश्वासन दे रहे हैं कि अभियुक्त मुकदमे के अनुसंधान के दौरान बुलाए जाने पर पुलिस थाने पर या अदालत में मुकदमे की हर सुनवाई के दिन उपस्थित होता रहेगा और यदि वह आवश्यक होने पर उपस्थित नहीं होगा तो उसके जमानत मुचलके की राशि जप्त कर ली जाएगी|
जब भी कोई न्यायालय में अपेक्षित होने पर उपस्थित नहीं होता है तो उसकी जमानत और मुचलका जप्त कर लिए जाते की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी कर दीया जाता है | साथ ही अभियुक्त और जमानती के विरुद्ध एक नई कार्यवाही दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 446 के अंतर्गत संस्थत की जाकर दोनों को सूचना भेजी जाती है कि क्यों ना उनसे जमानत और मुचलके की राशि वसूल की जाए | आमतौर पर वारंट पर गिरफ्तार किए जाने से बचने के लिए अभिव्यक्त लाइन थी अदालत के सम्मुख उपस्थित होकर अपनी जमानत का आवेदन देता है तब न्यायालय अभियुक्त की जमानत मिल लेने के अवसर पर इस धारा 446 की कार्रवाई की भी सुनवाई करता है और उसका निर्णय कर आता है | अभिव्यक्त के न्यायालय में उपस्थित हो जाने के कारण न्यायालय जमानत या मुचलके कि जब की गई राशि में कमी कर देता है | यह राशि जमा करने पर ही वह अभिव्यक्त को दोबारा जमानत पर छोड़ता है | यदि ऐसा होता है तो जमानती पर कोई भार उपस्थित नहीं हो होता और यह जमानत की राशि से मुक्त हो जाता है | लेकिन यह अभियुक्त अदालत में उपस्थित ना हो और जारी किए गए वारंट पर दीजिए गिरफ्तार ना किया जा सके तो न्यायालय द्वारा जारी नोटिस पर जमानती को उपस्थित होने पर उससे कहा जाता है कि जिस अभियुक्त कि उसने जमानत दी थी वह अदालत में उपस्थित नहीं हुआ है इस कारण से उसे जमानत ही संपूर्ण राशि अदालत में जमा करा देनी चाहिए | इस समय जमानती न्यायालय से यह निवेदन कर सकता है कि उसे बात की जानकारी नहीं है कि अभियुक्त न्यायालय में उपस्थित नहीं हो रहा है अब उसे जानकारी हो गई है और वह स्वयं अभियुक्त को लाकर न्यायालय में उपस्थित करा देगा | जमानती के ऐसे निवेदन पर न्यायालय जमानती को अभियुक्त समय प्रदान करा देती है | लेकिन यदि जमानती उपयुक्त समय में अभियुक्त को न्यायालय में उपस्थित नहीं कर पाते हैं तो जमानती को संपूर्ण राशि न्यायालय में जमा करानी होती है | यदि वह ऐसी राशि न्यायालय में जमा नहीं कराए तो वह राशि उसकी संपत्ति से वसूल की जा सकती है अथवा उस राशि की वसूली के बदले जमानत को कुछ समय के लिए कारागार में निरूद्ध किए जाने पर आदेश दिया जा सकता है |
अब आप समझ गए होंगे कि यदि आप किसी अभियुक्त की जमानत देते हैं तो आपके क्या दायित्व हो सकते हैं ? यदि अभियुक्त बुलाने पर थाने में या फिर अदालत में मुकदमा की तिथि पर उपस्थित नहीं होता है तो आपसे उन्नति धनराशि वसूली जा सकती है जितनी राशि की आप ने जमानत दी है यदि वह राशि जमा नहीं कराई जाती है तो आपको उस राशि के बदले कुछ समय के लिए कारागार में निरुद्ध किया जा सकता है |
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