जमानत - Bail
जमानत
किसी भी गिरफ्तार व्यक्ति की स्वतंत्रता छीन जाती है और वह बंदी की स्थिति में आ जाता है जबकि उसे मुकदमे की अवधि के दौरान और अपराध सिद्ध होने तक निर्देश माना जाता चाहिए| मुकदमा काफी लंबा चल सकता है ऐसी स्थिति में उसे परिवार को भी कष्ट उठाना पड़ता है| यह भी हो सकता है कि उसके आजीविका के साधन नौकरी व्यवसाय आदि को हानि हो जाए ऐसे में उसका परिवार निर्धन असहाय तथा बेघर बार हो जाता है| यदि बंदी अपने परिवार ईस्ट मित्रों व वकील से अलग हो जाता है तो तय है कि वह अपने बचाव में कुछ नहीं कर पाएगा| इसके अतिरिक्त सरकार की राजस्व विभाग को भी उसे जेल में रखने का खर्चा उठाना पड़ता है| इस स्थिति का दूसरा पक्ष यह भी है कि गिरफ्तार कैदी को स्वतंत्र आवाजाही भी खतरनाक सिद्ध हो सकती है| वह दूसरे अपराध भी कर सकता है या भाग सकता है| वह केस के प्रमाणो को नष्ट कर सकता है और गवाहों को डरा धमका भी सकता है| वह राजनीतिक दबाव भी बना सकता है और समाज तथा न्याय की हानि कर सकता है| ऐसी अवस्था में जमानत ना देना विपरीत संभावनाओं को टालने का सही उपाय है|
जमानत शब्द का शाब्दिक अर्थ प्रतिभूति, सुरक्षा सिक्योरिटी रकम है| अपराध करने वाले व्यक्ति को पुलिस द्वारा गिरफ्तार करके अदालत के सामने मय अभियोग के पेश किया जाता है अभियोग का निर्णय अदालत द्वारा किया जाना होता है| यह लंबी प्रक्रिया होती है| इस कारण कानून में यह प्रावधान रखा गया है कि जहां तक संभव हो वहां तक अपराधी स्कोर न्यायिक हिरासत में रखने का ब्याज कुछ शर्तों के अधीन रखते हुए रिहाई प्रदान करने के लिए सिक्योरिटी रकम प्रतिभूति और सुरक्षा रकम को ही सामान्यतया जमानत कहा जाता है| इस प्रकार की जमानत अभियुक्त का कोई परिचित या उसके रिश्तेदार प्रदान करते हैं| तब जमानत पत्रों एवं बंध पत्रों की शर्तों के अनुसार अभियुक्त को जमानत पर रिहा कर दिया जाता है|
अपराध को जमानत के आधार पर दो भागों में विभाजित किया गया है| जमाने की प्रकृति के अपराध और अजमानतीय प्रकृति के अपराध| जमाने के प्रकृति के अपराध होने पर अभियुक्त की जमानत हो जाती है जबकि अजमानतीय मामलो में जमानत अधिकार स्वरूप नहीं होती ( भारतीय दंड संहिता 1973 के अंतर्गत विभिन्न धाराओं के अध्याय को देखें) सी आर पी सी की धारा 436 के अनुसार यदि किसी व्यक्ति को पुलिस किसी जमानती अपराध के मामले में गिरफ्तार करती है तो उस व्यक्ति को जमानत पर छोड़ा गया व्यक्ति जमानत पत्रों की शर्तों के अनुसार न्यायालय में हाजिर नहीं होती है तो कोर्ट उस व्यक्ति की जमानत खारिज कर सकता है| जमानत पर छोड़ा गया व्यक्ति जमानत पत्रों की अन्य शर्तों का भी पालन नहीं करता है तो कोर्ट उस व्यक्ति को जमानत पर छोड़ने से इंकार कर सकती है|
अजमानतीय मामलों में जमानत पर छोड़ना कोर्ट की इच्छा और विवेक व साक्षय पर निर्भर करता है| मृत्युदंड या आजीवन कारावास के दंणड से दंडित किए जाने वाले अपराध करने पर कोर्ट सामान्यत अपराधी की जमानत स्वीकार नहीं करता| यदि आजीवन कारावास या सजा ए मौत मिलने वाला अपराध किसी कमजोर या दुर्लभ व्यक्ति द्वारा या किसी स्त्री द्वारा या 16 वर्ष से कम उम्र की व्यक्ति द्वारा किया जाता है तो कोर्ट उस व्यक्ति की जमानत स्वीकार कर सकता है| इन मामलों मैं जमानत लेना या ना लेना कोट के विवेक और मामले की परिस्थितियों पर निर्भर करता है|
अग्रिम जमानत
जमानत प्रायः किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी के बाद कोर्ट द्वारा की जाती है| अग्रिम जमानत व्यक्ति की गिरफ्तारी के पूर्व ही प्रदान की जाती है| यदि किसी व्यक्ति ने अपनी अग्रिम जमानत करा रखी है तो उस व्यक्ति को गिरफ्तार के तुरंत बाद छोड़ दिया जाता है या गिरफ्तार ही नहीं किया जाता है| दंड प्रक्रिया संहिता संशोधन अनियमित 2005 की धारा 438 द्वारा अग्रिम जमानत को निम्न प्रकार के परिभाषा किया गया है_ जब किसी व्यक्ति को अजमानतीय अपराध में गिरफ्तार होने की आशंका होती है तो वाह बैठती सेशन कोर्ट या हाई कोर्ट से अपनी अग्रिम जमानत करवा सकता है| अग्रिम जमानत देना या ना देना कोट के विवेक और सोच का विषय है| कोर्ट मामले की परिस्थितियों को देखकर अग्रिम जमानत स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है| अग्रिम जमानत देते समय कोर्ट कुछ शर्तें भी लागू कर सकता है| उदाहरणार्थ
* पुलिस के प्रश्नों के उत्तर देने के लिए हाजिर रहेगा|
* वह किसी व्यक्ति को यह धमकी नहीं देगा कि वह वह पुलिस को कोई बात न बताए|
* कोर्ट की आज्ञा के बिना देश नहीं छोड़ेगा|
अग्रिम जमानत देते समय निम्न तथ्यों पर विचार किया जाता है_
1, अभियोग की प्रकृति और गंभीरता|
2, क्या आवेदक को पहले किसी संज्ञेय अपराध के लिए दंडित किया गया है?
3, न्याय से आवेदक के भागने की संभावना|
4, जहां आवेदक द्वारा उसे इस प्रकार गिरफ्तार करा कर क्षति पहुंचाने या अपमान करने के उद्देश्य से अभियुक्त लगायजाने की संभावना है|
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