प्रथम सूचना रिपोर्ट | FIR | First Information Report
प्रथम सूचना रिपोर्ट | What is FIR | First Information Report
(एफ आई आर)
जो सूचना किसी अधिकारी को निर्धारित नियमों के तहत लिखित रूप से प्रदान की जाती है उसे प्रथम सूचना कहते हैं और लिखित रूप में उसी सूचना को प्रथम सूचना रिपोर्ट f.i.r. पुकारा जाता है |
जुल्म अत्याचार तथा अधिकार समाप्ति के खिलाफ भारतीय नागरिक न्याय पाने के लिए सबसे पहले पुलिस के पास जाता है | कानून एवं विधि द्वारा स्थापित संस्था पुलिस द्वारा उसकी फरियाद सुनी जाती है और प्रथम सूचना के रूप में दर्ज कर ली जाती है | जुल्म का शिकार व्यक्ति साक्षर होने पर लिखित रूप से तथा निरक्षर होने पर मौखिक रूप से दर्ज करवा सकता है | यह जरूरी नहीं कि जुल्म का शिकार व्यक्ति ही दोषी के खिलाफ रिपोर्ट करें उसका प्रतिनिधि भी असाधारण स्थिति में पुलिस के पास एफ आई आर दर्ज करवा सकता है | लिखित सूचना के साथ सूचना अधिकारी के हस्ताक्षर भी होने चाहिए |
भारतीय दंड संहिता धारा 154 (1) में वर्णित है कि प्रत्येक संज्ञान योग्य अपराध (ऐसा अपराध जिस के आरोप में किसी व्यक्ति को वारंट के बिना भी गिरफ्तार किया जा सकता है) के संबंध में अगर थाने के प्रभारी को मौखिक सूचना दी जाती है तो उस अधिकारी द्वारा या उस के निर्देश पर लिखा जाना चाहिए और सूचना देने वाले को पढ़कर सुना देना चाहिए | थाना अधिकारी अथवा पुलिस अधिकारी द्वारा अपराधिक घटना का पूर्ण विवरण लिखा जाता है उसकी एक प्रति अपराध के शिकार व्यक्ति को नियमानुसार दी जाती है | अगर त्रुटिवस अपराध की संपूर्ण घटनाएं दर्ज नहीं हो तब भी f.i.r. से संबंधित मामले को खारिज नहीं किया जा सकता | f.i.r. पीड़ित पक्ष द्वारा दायर की गई सूचना है जिस पर पुलिस विधिक कार्रवाई तथा अन्वेषण करती है | लेकिन f.i.r. अपने आप में कोई साक्ष्य नहीं है | धारा 153(3) मैं बताया गया है कि अगर पुलिस अधिकारी एफ आई आर दर्ज करने से इंकार कर देता है तो सूचना देने वाला पुलिस अधिकारी को डाक के जरिए अपनी सूचना प्रेषित कर सकता है | पुलिस अधीक्षक ऐसे मामलों की कुछ भी जांच पड़ताल कर सकता है अथवा अपने अधीनस्थ अधिकारी को जांच का आदेश दे सकता है |
अपराध घटने के बाद f.i.r. की सूचना संबंधित थाना क्षेत्र अधिकारी को तीव्रता गति से की जानी चाहिए | कानून की धारा भी यही है कि अपराध की सूचना फौरन दर्ज हो और अपराधी को फौरन ही दंडित किया जाए | साधारण के अपराध होने के 12 घंटों तक उस अपराध की प्राथमिक जांच करवा देनी चाहिए | इससे अधिक देरी होने पर प्राथमिक की विश्वसनीय संदेह के घेरे में आ जाती है | उचित कारण साबित होने पर देरी से की गई f.i.r. क्षम्य में होती है | एक्सीडेंट अथवा झगड़ा होने पर हालत में घायल व्यक्ति को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाना प्रथम वरीयता है और इसके लिए हुआ विलंब कानूनी क्षम्य में है |
एफ आई आर दर्ज करते समय निम्नलिखित पहलुओं पर गौर रखना चाहिए
1) सूचना मंघड़ंत या अस्पष्ट नहीं होनी चाहिए बल्कि तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए ताकि पुलिस उसके आधार पर अपराधी की विरुद्ध कार्रवाई आरंभ कर सके|
2) सूचना कोई भी प्रदान करा सकता है इसके लिए मुक्त भोगी का खुद थाने में पहुंचना अनिवार्य नहीं है |
3) इसमें दोषी अथवा गवाह के नामों का शामिल होना अथवा अपराध की प्रकृति का वर्णन होना अनिवार्य शर्त नहीं है | कि तू किया प्रथम सूचना रिपोर्ट है जिसके आधार पर पुलिस हरकत में आती है |
पुलिस के f.i.r. लिखवाने की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है | कानून कहता है कि विलंब से f.i.r. लिखवाने पर भी न्याय किया जाएगा | उदाहरण के तौर पर जब बलात्कार के एक मामले में एफ आई आर दर्ज करवाने में विलंब हुआ तब अदालत पीड़ित के परिवार की इस दलील से सहमत हुई कि इस मामले में परिवार की प्रतिष्ठा का सवाल जुड़ा हुआ था |
अपराधी को दंडित करवाने के लिए वाईआर को प्रथम कारवाही कहा जाता है | संज्ञेय किस्म का अपराध होने पर पुलिस द्वारा मजिस्ट्रेट के आदेश बिना भी नामजद अभियुक्तों संदिग्ध अभियुक्तों की गिरफ्तारी की जा सकती है साथ ही अपराध की तहकीकात भी की जा सकती है | बेहद संगीन मामले के अभियुक्तों की गिरफ्तारी इस कारण भी आवश्यक होती है ताकि वह घटनास्थल पर मौजूद सबूतों को नष्ट ना कर सके |
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