क्या समानता का अधिकार व्यक्तिगत कानूनों तक फैला हुआ है?
Right to Equality and Personal Laws / Women Rights in Indian Constitution and Indian Kanoon
प्रश्न :- क्या समानता का अधिकार व्यक्तिगत कानूनों तक फैला हुआ है?
उत्तर -तथ्यात्मक रूप से समानता के अधिकार मैं ऐसा कुछ नहीं है जिसे व्यक्तिगत कानूनों तक फैलाया जा सके| विवाह . तलाक तथा उत्तराधिकार से संबंधित व्यक्तिगत कानूनों के अस्तित्व अभ्यास तथा समावेश ( रिवाजों) को राज्य के यंत्र द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता क्योंकि यह धार्मिक कार्यों के अभ्यास तथा प्रसार मैं हस्तक्षेप समझा जाएगा| परंतु निश्चित रूप से धार्मिक पद्धतियों तथा प्रथाओं को जो की मूल्य रूप से अपमानजनक तथा अमाननीय है उन्हें चुनौती दी जा सकती है व प्रतिबंधित किया जा सकता है|1997 मैं उच्चतम न्यायालय ने अहमदाबाद वूमेन एक्शन ग्रुप एक लोक सेवक संघ व यंग वूमेन क्रिकेट सीटन एसोसिएशन द्वारा दाखिल याचिका को अस्वीकार किया जिसमें की व्यक्तिगत कानूनों को चुनौती दी गई थी|
उच्चतम न्यायालय ने तीन जनहित याचिकाओं को खारिज किया| इन जनहित याचिकाओं में हिंदू मुसलमानों तथा क्रयस्टिन के विवाह, उत्तराधिकार से संबंधित भेदभाव पूर्ण कानूनों से महिलाओं की सुरक्षा मांगी गई थी| उच्चतम न्यायालय ने यह कहा कि केवल विधायिका ही व्यक्तिगत कानूनों से संशोधन कर सकती है
नोट:
सामान्यतः व्यक्तिगत कानूनों के अंतर्गत विवाह तलाक तथा उत्तराधिकार से संबंधित मामले आते हैं| बहुत सारी महत्वपूर्ण संस्थाओं के केंद्र सरकार सरकार को याचिका दाखिल करके व्यक्तिगत कानूनों में स्थापित असंगत स्थितियों को दूर कराने के लिए सुधारात्मक कदम उठाने के लिए कहा| यह स्वागत योग्य कदम है की संशोधन की मांग संबंधित समुदायों के द्वारा उठाए जा रहे हैं| परंतु केंद्र सरकार ने इन मांगों की तरफ बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया है| सरकार की पक्षपात पूर्ण व गैर जिम्मेदार रवैया का फायदा उठाकर कुछ संगठनों ने अपने निहित स्वार्थी तथा पक्षपातपूर्ण रवैए के कारण दूसरे समुदायों के खिलाफ निंदामय अभियान चला दिया है| Travancore Christian Succession Act के प्रावधानों मैं उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई कि यह प्रावधान समानता के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं|
परंतु इस संवैधानिक मुद्दे का निर्णय करना व्यर्थ हो गया क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने किया निर्धारित किया कि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के लागू होने के बाद ट्रावनकोर अधिनियम प्रासंगिक नहीं रहा है|
प्रश्न :- यदि संसद कानून बनाए या सरकार कोई नियम बनाए जो कि महिलाओं के लिए भेदभाव पूर्ण है तो क्या यह कानून वैध होगा?
उत्तर नहीं| संसद द्वारा बनाया गया कानून या सरकार द्वारा बनाया गया नियम वैध नहीं है यदि वह मौलिक अधिकारों के प्रतिकूल है|
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