विवेचना के लिए गिरफ्तारी आवश्यक नहीं | Arrest is not mandatory for investigation
विवेचना के लिए गिरफ्तारी आवश्यक नहीं| Arrest is not mandatory for investigation -
दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक अति महत्वपूर्ण निर्णय अपने स्वामेव अधिकारों का उपयोग करते हुए दिया| एक अंग्रेजी के समाचार– पत्र में एक समाचार प्रकाशित हुआ था कि सीबीआई को विवेचना के चलते हुए एक उच्च अधिकारी को गिरफ्तार ना करने के संदर्भ में चेतावनी दी गई तथा सीबीआई के द्वारा न्यायालय में पेश की गई चार शीट( आरोप पत्र) को न्यायालय द्वारा शिकार नहीं किया गया |
विवेचना के दौरान अभियुक्त को गिरफ्तार न करना पश्चाताप का प्रमाण था| दिल्ली उच्च न्यायालय ने अंग्रेजी दैनिक समाचार_ पत्र में प्रकाशित इस समाचार को पढ़ने के बाद इसका संज्ञान लिया तथा इस बात पर विचार किया कि क्या कोई न्यायालय इस आधार पर आरोप_ पत्र को स्वीकार करने से इंकार कर सकता है कि अभियुक्त को विवेचना के दौरान गिरफ्तार नहीं किया गया अथवा न्यायालय के पक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया? दिल्ली उच्च न्यायालय ने प्रश्न का उत्तर न, मैं देते हुए कहा कि आरोप_ पत्र प्रस्तुत करने से पूर्व अभियुक्त की गिरफ्तारी अथवा अभियुक्त को न्यायालय को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तो न्यायालय उसे स्वीकार करने के लिए कर्तव्य वध है| आरोप_ पत्र को इस आधार पर वापस नहीं किया जा सकता कि अभियुक्त के पहले गिरफ्तार करके न्यायालय के समक्ष पेश किया जाए| आरोप पत्र के साथ अभियुक्त को न्यायालय के समक्ष पेश किया जाना जरूरी नहीं है| न्यायालय में आरोप पत्र पेश होने पर न्यायालय के सामने मात्र तीन विकल्प होते हैं-
1, आरोप पत्र को शिकार करके अपराध का संज्ञान लेना|
2, आरोप पत्र से असहमति प्रकट करते हुए कार्यवाही समाप्त कर देना|
3, मामले की पुन: विवेचना के आदेश पारित करना|
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 के अंतर्गत पुलिस केवल दो तरह की ही आ संख्या ही न्यायालय में पेश कर सकती है| एक आरोप पत्र के रूप में कती पय व्यक्तियों द्वारा अपराध किया गया है तथा दूसरी किसी अपराध का नहीं होना पाया गया है| जिसे आमतौर पर फाइनल रिपोर्ट कहा जाता है|
पुलिस अगर आरोप पत्र न्यायालय में पेश करती है तो यह जरूरी नहीं है कि वह अभियुक्त/ अभियुक्त को भी गिरफ्तार करके न्यायालय में पेश करें| अगर अभियुक्त को गिरफ्तार किए बगैर ही विवेचना पूरी की जा सकती तथा अभियुक्त जांच अधिकारी का विवेचना करने में सभी तरह का सहयोग प्रदान कर रहा है तो ऐसी अवस्था में पुलिस को गिरफ्तारी की आवश्यकता नहीं रह जाती है| एकल पीठ नई दिल्ली के फौजदारी न्यायालयों के लिए निम्नलिखित निर्देश भी जारी किए|
1' जब कभी पुलिस या कोई जांच एजेंसी अभियुक्त को गिरफ्तार किए बिना आरोप पत्र न्यायालय में पेश करती है तो ऐसी अवस्था में न्यायालय द्वारा अभियुक्त को केवल समन जारी किया जाएगा गिरफ्तारी का वारंट नहीं|
2' जब कभी कोई न्यायालय या मजिस्ट्रेट गिरफ्तारी का वारंट जारी करता है तो यह आवश्यक है कि वह वारंट जारी करने की बात को अपने आदेश में स्पष्ट करें|
3' अभियुक्त के व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने में समाया प्रार्थना पत्र दिए जाने और उसे अस्वीकार कर देने पर उसके विरुद्ध गिरफ्तारी का वारंट जारी नहीं किया जाएगा और उसे समन जारी किए जाएंगे|
4' गैर जमानती अपराध में अभियुक्त के उपस्थित होने पर अभियुक्त के जमानत का प्रार्थना पत्र मांगा जाएगा और उसे जमानत पर रिहा कर दिया जाएगा| यदि व्यक्ति को जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं किया गया है तो उसे अचानक जेल भेजना उचित नहीं है|
5' जमानत धनराशि बहुत अधिक नहीं होनी चाहिए| अभियुक्त की वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखकर जमानत की राशि निश्चित होनी चाहिए| दिल्ली उच्च न्यायालय नए जमाने के संदर्भ में निम्नलिखित समय भी स्पष्ट किएहैं-
1' तब तक जमानत और शिव कार नहीं की जानी चाहिए जब तक अपराध बहुत गंभीर और उसके लिए दंड भी गंभीर न हो|
2, उन मामलों में जमानत और शिव कार की जा सकती है जहां अभियुक्त जमानत पर रिहा के पश्चात उपस्थित नहीं होगा|
3, जब अभियुक्त के द्वारा न्याय मांगा में बाधा डालने जाने की स्थिति हो तब जमानत और शिकार की जा सकती है|
4, यदि अभियुक्त का पुराना इतिहास प्रगट करना है कि जमानत का दुरुपयोग होगा और वह अन्य अपराध कर सकता है तब जमानत अस्वीकार कर दी जाएगी|
5, उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने इस निर्णय में गंभीरतापूर्वक दोहराया कि अधीनस्थ आन न्यायालय द्वारा आदेशों का पालन किया जाना एक अनिवार्यता है अन्यथा अभी अधीनस्थ न्यायालय और अवमानना के दोषी होंगे|
Comments
Post a Comment