पुलिस उत्पीड़न से कैसे बचें
पुलिस उत्पीड़न से कैसे बचें
यूं तो पुलिस पर तरह-तरह के दोषारोपण होते रहते हैं परंतु सच है कि न जाने कौन व्यक्ति को पुलिस उत्पीड़न का शिकार हो जाए | पुलिसिया उत्पीड़न कभी-कभी तो सारी मानवीय सीमाओं को पार कर जाती है | कुछ समय से कुछ पुलिसवाले मामूली वजहों पर भी दबिश या तलाशी के नाम पर रात को घरों में कूद जाते हैं | यह नितांत गलत है तथा लोगों की निजता को भंग करता है परंतु अगर आप अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं तो पुलिस को इस कृत्य से जहां रोक सकते हैं वही उन्हें ऐसा करने पर दंड भी दिला सकते हैं |
अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता का परिचय देते हुए उत्तर प्रदेश के बांदा जनपद की एक महिला ने 1 मई सन 1998 को बांद्रा जनपद के थाना तिंदवारी के मामलों में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण याचिका में प्रार्थना की गई कि बांद्रा जनपद के थाना तिंदवारी को निर्देशित किया जाए कि वह उसे तथा उसके परिवार वालों को रात में छापे डाल कर तलाशी की कार्यवाही करके परेशान ना करें दूसरी प्रार्थना थी कि थानाध्यक्ष तिंदवारी के विरुद्ध c.i.d. की जांच कराकर उचित कार्रवाई की जाए | थानाध्यक्ष द्वारा याची की निजता को भंग करने के लिए क्षतिपूर्ति दिलाई जाए |
याची महिलाए के सम्मानित कृषक थी | कुछ लोग जो दुर्भावना रखते थे उसकी भूमि पर कब्जा करना चाहते थे | इसकी रिपोर्ट भी थाना तिंदवारी में की गई परंतु इस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई | कब सिविल कोर्ट में निषेधाज्ञा का वाद प्रस्तुत किया गया | इस पर विपक्षियों ने थानाध्यक्ष से मिलकर समझौते के लिए दबाव डलवाया | याची के ना मानने पर पुलिस ने देर रात बिना कारण उसके घर छापा डाला तथा उसके मौलिक अधिकारों को प्रभावित किया | इस पर याची ने डीआईजी पुलिस तथा गवर्नर से शिकायत की जिस कारण पुलिस और ज्यादा नाराज हो गई | इस याचिका पर उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने अधिकारियों को नोटिस जारी की,कि क्यों ना उसके विरुद्ध प्रार्थना सूचना रिपोर्ट दर्ज की जाएजाए ? इस नोटिस पर पुलिस अधिकारियों ने शपथ पत्र प्रस्तुत करते हुए कहा कि याची ने ना तो कोई रिपोर्ट दर्ज करवाई और ना ही उस पर कभी समझौता के लिए कोई दबाव डाला गया तथा कथित रात के छापे के संदर्भ में कहा गया कि अनुसूचित जाति के व्यक्ति ने पुलिस को प्रार्थना पत्र दिया था कि उससे रंजीत रखने वाले लोग उसकी हत्या कराने के लिए आदमियों तथा बंदूक को सहित आए हैं तथा छिपे हुए हैं इस कारण से छापा मारा गया परंतु वह स्थान छोड़कर जा चुके थे इसलिए पकड़े नहीं जा सके | इस प्रकरण की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने थाना तिंदवारी की जीडी तलब की तो उसमें उक्त व्यक्ति की रिपोर्ट का कोई विवरण नहीं था | जनरल डायरी में यह भी दर्द नहीं था कि उक्त रिपोर्ट के आधार पर कोई छापा डाला गया | तलाशी हेतु दंड प्रक्रिया संहिता में पुलिस को तलाशी की शक्तियां प्रदान की गई हैं जिससे स्पष्ट है तलाशी तभी ली जा सकती है जब अधिकारी संतुष्ट हो कि किसी अपराध के अन्वेषण के लिए यह आवश्यक है ए वक्त संतुष्ट के आधार पर विश्वास के कारण को वह लिपिबद्ध करेगा | इसके अतिरिक्त धारा 100 द.प्र.सं के प्रावधानों का पालन करेगा जिसमें यह स्पष्ट उपलब्ध है कि वह दो या अधिक आसपास के सम्मानित व्यक्तियों को बुलाएगा | यदि तलाशी वाले स्थान में कोई महिला निवास कर रही है तो उसे सूचित करेगा कि वह वहां से हट सकती है एवं उसे हटाने की पर्याप्त सुविधा प्रदान करेगा |
इस मामले में पुलिस द्वारा उक्त सभी तलाशी के प्रावधानों की गंभीर रूप से अवहेलना की गयी | अत: पुलिस द्वारा याची के घर में प्रवेश किसी विवेचना है तो नहीं कहा जा सकता है यदि पुलिस के अनुसार रिपोर्ट की बात मान ली जाए तो कथित रिपोर्ट3.11.95 को की गई थी और छापा 15.11.95 को डाला गया जिससे स्पष्ट है कि कोई तात्कालिक आवश्यकता नहीं थी | उक्त सभी तथ्यों से स्पष्ट है कि पुलिस का कृत्य पूर्णतया मन माना था जिससे याची को मानसिक कष्ट हुआ एवं पुलिस द्वारा उसे प्रताड़ित किया गया एवं संबंधित तलाशी में उसकी निजता पर हमला हुआ |
अत: थानाध्यक्ष तिंदवारी को ₹5000 बतौर क्षतिपूर्ति याची को अदा करने का निर्देश दिया गया |
उक्त निर्णय से स्पष्ट है कि नागरिक को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहना आवश्यक है |
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