मोटर वाहन अधिनियम 1988

 मोटर वाहन अधिनियम 1988

मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 113 व 114 के अनुसार ओवरलोड माल ले जाना अपराध है।  इसी अधिनियम के अनुसार शराब पीकर वाहन चलाना अपराध है।  इस अधिनियम की धारा 192 (A) के अनुसार बसों में माल ढोना अपराध है।  ट्रक में ओवरलोड मार पाए जाने पर 2000 रुपए या इससे अधिक जुर्माना किया जा सकता है।  ट्रकों की कमी भी जांच की जा सकती है ओवरलोड माल को रास्ते में उतारा जा सकता है।  ओवरलोड माल पकड़े जाने पर ड्राइवर, ट्रक मालिक, ट्रांसपोर्ट कंपनी के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।  ट्रक और बस को सीज भी किया जा सकता है।  मोटर यान अधिनियम 1988 के अनुसार मोटर वाहन से घायल या मृत व्यक्ति के वारिस वाहन मालिक, बीमा कंपनी ,ड्राइवर से हर्जाना प्राप्त कर सकते हैं। 

मोटर वाहन अधिनियम की धारा 163 व 166 के अनुसार मुआवजा घायल व्यक्ति या मृतक के वारिस या संपत्ति का नुकसान होने वाले व्यक्ति प्राप्त कर सकते हैं।  इस अधिनियम के अनुसार वाहन एक्सीडेंट में घायल व्यक्ति का प्रतिनिधि भी हरजाने के लिए मुकदमा फाइल कर सकता है। 

प्रत्येक जिले में एक मोटर दुर्घटना दावा प्राधिकरण होता है।  दुर्घटना से संबंधित मामले इसी प्राधिकरण में सुने जाते हैं।  कोई भी घायल व्यक्ति या मृतक के वारिस उस जिले में मुआवजा देने के लिए दावा कर सकते हैं, जिस जिले में बीमा कंपनी रहती है।  यह मुकदमा उस जिले में भी किया जा सकता है जहां दुर्घटना घटी या घायल व्यक्ति रहता है।  मुआवजे के लिए मुकदमा करने वाले व्यक्ति को 30 रुपए की कोर्ट फीस का भुगतान करना होता है। 

मुकदमा फाइल करते समय निम्नलिखित कागजात लगाए जाने आवश्यक है-

• मुकदमा करने वाले व्यक्ति का पासपोर्ट साइज का फोटो। 

• वाहन के मालिक के वाहन संबंधी कागजात। 

• एक्सीडेंट की एफ आई आर की प्रति। 

• मरे व्यक्ति या घायल व्यक्ति की नौकरी, आय, आयु के कागजात। 

यह सभी कागजात इसलिए आवश्यक है क्योंकि कोर्ट हर्जाना मृतक की कमाई और उम्र के अनुसार दिलवाता है।  यदि कोई व्यक्ति ₹10000 प्रति महीने काम आता है तो कोर्ट उसी हिसाब से हर्जाना दिलवा ता है और उम्र का प्रमाण पत्र इसलिए आवश्यक है क्योंकि कोर्ट यह देखता है कि मरने वाला कितने वर्ष और कमाता| यह सब दस्तावेज हर जाना तय करने में कोर्ट की मदद करते हैं। 

• मरने वाले व्यक्ति की पोस्टमार्टम रिपोर्ट। 

• घायल व्यक्ति की एक्स-रे रिपोर्ट। 

• डॉक्टर की पर्ची एवं इलाज में लगी दवाइयों के बिल। 

यदि आप एक्सीडेंट में घायल हुए हैं तो आपको खर्चों के बिल पेश करने की आवश्यकता है ताकि कोर्ट आपको उनका उचित भुगतान दिलवा सके। 

मुकदमा कोर्ट में फाइल होने पर कोर्ट एक्सीडेंट करने वाले ड्राइवर को बीमा कंपनी को वाहन मालिक को नोटिस देता है।  मामले से संबंधित सभी व्यक्ति आने पर कोर्ट में सवाल जवाब होते हैं और कोर्ट अपना निर्णय देता है। 

कोर्ट निर्णय देते समय मृतक के अंतिम संस्कार का खर्चा ,उसकी पत्नी को वैवाहिक जीवन का हरजाना ,बच्चों का पिता प्रेम से वंचित होने का हर्जाना, मानसिक परेशानी का हर्जाना, मरने वाले की शेष दिनों या वर्षों में संबंधित तनखा आदि का कुल हर्जाना दिलवाता है।  कई बार कोर्ट में तक की मां और बच्चों के नाम एफडी करवाने का भी आदेश देता है। 

मोटर वाहन अधिनियम 1978 के अनुसार परमानेंट विकलांग होने वाले व्यक्ति को कम से कम 25 हजार रुपए का हर्जाना मिलता है और मरने वाले व्यक्ति के वारिसों को कम से कम 50 हजार रुपए का हर्जाना मिलता है।  पीड़ितों की दवा दारू और इलाज का भी खर्चा दिलवाया जाता है। 

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