अदालतों के प्रकार
अदालतों के प्रकार
हमारे देश में अलग-अलग मकसद के लिए अलग-अलग अदालतों की स्थापना की गई है। प्रत्येक अदालत के कार्य एवं अधिकार भी अलग-अलग होते हैं। हमारे देश की सबसे बड़ी अदालत नई दिल्ली में स्थित है और उसका नाम सर्वोच्च न्यायालय है। प्रत्येक राज्य के लिए उच्च न्यायालय की स्थापना की गई है जो कि राज्य विशेष की राजधानी में स्थित होते हैं। भारत में निम्न प्रकार के दंड न्यायालय स्थापित किए गए हैं।
सेशन कोर्ट: सेशन कोर्ट प्रत्येक जिले में एक होता है तथा इसकी शक्ति ज्यादा होती है। सेशन कोर्ट में बैठने वाले जज को सेशन जज कहा जाता है सीआरपीसी की धारा 28 के अनुसार सेशन जज सजा ए मौत की सजा दे सकता है लेकिन इस फैसले से हाईकोर्ट सहमत होना चाहिए। सहायक सेशन जज आजीवन कारावास या मौत की सजा या 10 वर्ष से अधिक की सजा को छोड़कर कोई भी दंड दे सकता है।
न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम वर्ग: यह कोट 3 वर्ष से अधिक का कारोबार या पांच हजार तक का जुर्माना या दोनों का दंड दे सकता है प्रत्येक तहसील में एक न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम वर्ग या द्वितीय की अदालत होती है।
मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट: महानगरों में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत लगती है महानगर मजिस्ट्रेट की शक्तियां न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम वर्ग के समान होती है। न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वितीय वर्ग: न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वितीय वर्ग 1 वर्ष तक का कारावास या 1000 रुपए का जुर्माना या दोनों का दर्द दे सकता है।
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट: इस मजिस्ट्रेट की अदालत महानगरों में होती है इसको मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समान शक्तियां प्राप्त होती हैं।
जिला मजिस्ट्रेट: इसकी अदालत जिला मुख्यालय में होती है इसको कार्यपालक मजिस्ट्रेट भी कहा जाता है।
कार्यपालक मजिस्ट्रेट: उपखंड कार्यपालक मजिस्ट्रेट की अदालत तहसील स्तर पर होती है ।
विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट: इसकी अदालत किसी विशेष मामले की सुनवाई हेतु लगती है। इसमें जज की नियुक्ति हाईकोर्ट करता है। मानकों में विशेष महानगर मजिस्ट्रेट होता है सीआरपीसी की धारा 26 के अनुसार भारतीय दंड संहिता में बताए गए अपराधों में से कोई भी अपराध करने पर या किसी दूसरे कानून में बताए गए अपराध करने पर उस व्यक्ति के मामले का फैसला हाई कोर्टह, सेशन कोर्ट अन्य कोर्ट कर सकता है।
सीआरपीसी की धारा 27 के अनुसार 16 वर्ष से कम उम्र के अभियुक्त का विचारण मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा किया जा सकता है या बालक अधिनियम 1960 के अंतर्गत स्थापित कोर्ट कर सकता है। लेकिन यहां पर बालक द्वारा ऐसा अपराध नहीं किया गया होना चाहिए जिसकी सजा मौत या आजीवन कारावास होता है।
सीआरपीसी की धारा 30 के अनुसार जुर्माना न देने पर कोई भी मजिस्ट्रेट कानून के अनुसार सजा की अवधि को बढ़ा सकता है लेकिन यहां पर अदालत अपनी शक्ति से अधिक सजा नहीं दे सकती।
सीआरपीसी की धारा 138 के अनुसार यदि किसी अभियुक्त पर कई जुर्माना का आरोप है और उनका विचारण एक साथ किया जा रहा हो तो आईपीसी की धारा 71 के अनुसार कोर्ट विभिन्न अपराधों के लिए भिन्न-भिन्न दंड देगी। यह सभी दंड कारावास के रूप में एक के बाद एक भोगे जाएंगे।
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