दोबारा दंड
दोबारा दंड
सीआरपीसी की धारा 300 के अनुसार यदि किसी व्यक्ति को किसी जुर्म में एक बार सजा सुनाई जा चुकी है या रिहा कर दिया गया है तो उस व्यक्ति पर उसी जुर्म के लिए दोबारा मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति पर यदि चोरी का आरोप लगा है और मुकदमा चलाने के बाद उस व्यक्ति को कोर्ट रिहा कर देता है तो अब उसी आरोप के अनुसार उस व्यक्ति पर दोबारा मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
लेकिन सीआरपीसी की धारा 300 में तीन अपवाद दिए गए है।
1 कोई व्यक्ति एक समय में 2 जन्म करता है और एक जुर्म का मुकदमा चलाया जाता है और उस व्यक्ति को रिहा कर दिया जाता है लेकिन दूसरा अपराध के लिए उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है। उदाहरण के लिए मोहन पर हत्या का मुकदमा चलाया जाता है और मोहन मुकदमे में रिहा कर दिया जाता है लेकिन बाद में पता चलता है कि मोहन ने हत्या के समय चूड़ी भी की थी तो अब मोहन पर चोरी का मुकदमा चलाया जा सकता है।
2 कोई व्यक्ति ऐसा कार्य करता है जो अपराध है और कुछ समय बाद एक गंभीर अपराध बन जाता है तो अपराध करने वाले व्यक्ति पर दूसरे गंभीर अपराध का भी मुकदमा चलाया जा सकता है। उदाहरण के लिए रामू ने किसी व्यक्ति को गंभीर रूप से घायल करता है और रामू पर उस व्यक्ति को गंभीर रूप से घायल करने का मुकदमा चलाया जाता है। कुछ दिनों बाद घायल व्यक्ति की मौत हो जाती है अब रामू पर दोबारा हत्या का मुकदमा चलाया जा सकता है।
3 यदि कोई व्यक्ति कोई अपराध करता है और उस पर मुकदमा किसी ऐसी कोर्ट में चलाया जाता है जो उस मामले को सुनने योग्य नहीं है तो पहले वाले को द्वारा रिहा करने के बाद भी दूसरे उपयोग कोर्ट में उस व्यक्ति पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
अंतर संक्षेप में सीआरपीसी की धारा तीन सौ के अनुसार इस धारा में दिए गए वादों को छोड़कर किसी एक अपराध के लिए दो बाद मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। धारा 300 के अनुसार इस बात का कोई प्रभाव नहीं पड़ता कि अपराधी को पहले वाले मुकदमे मैं रिहा कर दिया गया है या सजा दी गई है।
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