Meaning and Explanation of Article 14 of Indian Constitution in Hindi

Meaning and Explanation of Article 14 of Indian Constitution in Hindi

उच्चतम न्यायालय ने अनेक विषयों के अनुच्छेद 14 के अर्थ एवं विस्तार का विवेचन किया है| In Re Special Bill स्पेशल बिल के मामले में Hon'ble Justice Chandrchud ने अनुच्छेद 14 में लागू होने वाले सिद्धांतों को reformulate किया है| इसकी श्री Seervai महोदय ने आलोचना की है| उनका मत है कि  न्यायधीपति श्री चंद्रचूड़ ने डालमिया जैन के मामले में निरूपित सिद्धांतों को बिना गलत बताए हुए निरूपित किया है और इस प्रकार एक सुनिश्चित विधि को अनिश्चित  बना दिया है जो उचित नहीं है| श्री  फिरवही का मत सही है| ऐसी दशा में डालमिया जैन के मामले में निरूपित सिद्धांतों को यहां दिया जा रहा है क्योंकि वे अभी भी विद्यमान है|
(1) कोई विधि संवैधानिक हो सकती है यदि वह एक व्यक्ति विशेष से ही संबंध रखती है| यदि किन्हीं विशेष परिस्थितियों के कारण जो उस पर लागू होती है किंतु दूसरों पर लागू नहीं होती तो ऐसी दशा में उस अकेले व्यक्ति को ही एक वर्ग माना जा सकता है|
(2) उदाहरण सदैव किसी अधिनियम की संवैधानिकता के पक्ष में की जाती है और यही साबित करने का भार टी  वर्गीकरण गलत है  उस पर होता है  जो इसे चुनौती देता है |
(3) यह अवधारणा की जाती है कि विधानमंडल अपनी जनता की आवश्यकताओं को समझता है और उनका सही मूल्यांकन करता है और यह कि उसकी विधियां अनुचित समस्याओं को अभिव्यक्ति के स्वरूप और उसने जो विभिन्न कर रखा है उसकी समुचित आधार है|
(4) इस अवधारणा को इस आधार पर खंडित किया जा सकता है कि प्रत्यक्षत: कानून में कोई वर्गीकरण नहीं किया गया है और कोई ऐसा विशिष्ट अंतर नहीं है जो कानून से प्रभावित उस व्यक्ति या वर्ग में विशेष रूप से मौजूद है, किंतु दूसरे व्यक्ति या वर्ग को लागू नहीं होती है जिस पर भी विधि एक वर्ग को आघात पहुंचाती है|
(5) संविधानिकता कि उस धारणा को  बनाए रखने की पूरी स्वतंत्रता सामान्य ज्ञान के विषयों को, प्रतिवेदनों को, तत्कालीन इतिहास और तथ्यों के प्रत्येक दशा के ऊपर विचार कर निश्चित की जाएगी जो विधि बनाने के समय मौजूद थी| ऐसा तभी किया जाता है जब वर्गीकरण का आधार अधिनियम के स्पष्ट रूप में नहीं दिया रहता है|
(6) विधानमंडल को पानी की मात्रा को निर्धारित करने की पूरी स्वतंत्रता है और वह प्रतिबंधों को केवल उन्हीं मामलों तक सीमित रख सकता है जहां इसकी स्पष्ट रूप से आवश्यकता है|
(7) यदि प्रत्येक अधिनियम में कोई वर्गीकरण नहीं किया गया है तो संवैधानिकता की कल्पना आवश्यकता से अधिक मात्रा तक नहीं की जा सकती है, अर्थात सदैव यह मानने तक नहीं की जा सकती है कि कुछ निश्चित व्यक्ति हो या निगमों को सफलता पूर्णिया विभेद कारी विधान के अधीन करने के लिए अवश्य ही कोई प्रकट तथा अज्ञात कारण है|
(8) वर्गीकरण विभिन्न आधारों पर किया जा सकता है जैसे - भौगोलिक स्थिति, उद्देश्य, व्यवसाय आदि बातों पर|
(9) यह आवश्यक नहीं कि वर्गीकरण वैज्ञानिक किया तार्किक रूप से पूर्ण हो क्योंकि यह ना तो आवश्यक की है और ना संभव है क्षमता का अर्थ सामान्य स्थिति में रहने वाले लोगों के साथ समान व्यवहार नहीं होता है| समान नहीं वरन समरूप ही पर्याप्त है|
(10) मौलिक विधि(Substantive Law) और प्रक्रियात्मक विधि (Procedural Law) दोनों में विभेद कार्य उपबंध हो सकते हैं अतः अनुच्छेद 14 दोनों को लागू होता है|
यदि कोई वर्गीकरण उपयोग तत्वों में से किसी भी तत्व पर आधारित है तो उसे एक मान्य वर्गीकरण माना जाएगा यह प्रश्न कि क्या वर्गीकरण युक्त और उचित है अथवा नहीं कानून की क्षमताओं की अपेक्षा सामान्य ज्ञान एवं सूज भुज पर अधिक जांच और निर्णीत किया जाना चाहिए|

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