Civil Procedure Code in Hindi - Some Questions & Answers

Civil Procedure Code in Hindi - Some Questions & Answers

प्रश्न :- भारत में दीवानी प्रक्रिया से संबंध मूल अधिनियम क्या है? 
उत्तर - दीवानी प्रक्रिया संहिता 1908 के तहत इस विषय पर कानून पाए जा सकते हैं  उच्च न्यायालय के द्वारा अपनी तथा अधिनस्थ न्यायालयों की प्रक्रियाओं की नियंत्रित करने के लिए जो नियम बनाए जाते हैं वे संहिता के पूरक ही होते हैं?

प्रश्न :- क्या आपराधिक व दीवानी प्रक्रियाओं के मध्य कोई अंतर भी है? 
(उत्तर) आपराधिक प्रक्रियाओं में अपराधी को दंड देने का लक्ष्य होता है और प्रक्रिया हमेशा राज्य एवं अपराधी के बीच ही चला करती है | दीवानी प्रक्रिया में संपत्ति की वापसी या धन की प्राप्ति और मुआवजे का आदेश अथवा किसी अधिकारी को आधार बनाकर राहत प्राप्त करने का उद्देश्य होता है जो उस व्यक्ति के पक्ष में उठा रहा होता है जिसे राहत चाहिए

प्रश्न :-  क्या राज्य प्रक्रिया में एक पक्ष होता है? 
उत्तर :- जी हां राज्य भी एक पक्ष हो सकता है यदि राज्य से अथवा राज्य के विरुद्ध कोई नागरिक अधिकार मांग कर रहा हो |

प्रश्न :- यदि राज्य का एक पक्ष होता है तो दीवानी मामले की कार्यवाही क्या भिन्न होती है
उत्तर :- सामान्य रूप से दोनों प्रकार के मामले में प्रक्रिया एक सामान्य ही होती है | परंतु धारा 80 के तहत दीवानी प्रक्रिया यह बताती है कि जब भी कोई वाद पत्र किसी सरकारी अधिकारी के विरुद्ध लाया जाता हो तो यह उस व्यक्ति के लिए आवश्यक है, जो राज्य या सरकारी अधिकारी के विरुद्ध अपील कर रहा है कि लिखित में वह 2 महीने की सूचना हेतु दे, कुछ दूसरे अन्य मामलों में भी, राज्य के विरुद्ध मुकदमा कराने के लिए कुछ विशिष्ट नियम बनाए गए हैं | यहां इस बात का ध्यान दिया जाना चाहिए कि एक सामान्य आदमी को तुलना में राज्य के पास सीमा बंधन अवधी की एक विशेष वह उदार अवधि होती है | कोई व्यक्तिगत आदमी राज्य के विरुद्ध अपना मुकदमा एक निश्चित समय के भीतर ही ला सकता है परंतु राज्य की एक दावेदार की स्थिति में,  30 वर्ष की एकाधिकार अवधि प्राप्त है, जिसके भीतर वह वाद प्रस्तुत कर सकता है

प्रश्न :- क्या नियम के विरुद्ध मुकदमा दायर किया जा सकता है
उत्तर :- हां, परंतु इस मामले में जो दस्तावेज अदालत में जमा किए जाते हैं, उस पर निगम द्वारा अधिकृत प्रतिनिधि के हस्ताक्षर होने अनिवार्य हैं चाहे वह निगम सार्वजनिक क्षेत्र में हो या व्यक्तिगत क्षेत्र में हो |

प्रश्न :- क्या किसी संघ द्वारा या उसके विरुद्ध मुकदमा दायर किया जा सकता है
उत्तर :- यदि संघ की कोई वैधानिक पहचान हो चुकी हो तो वह कोई वाद प्रस्तुत कर सकता है |

प्रश्न:- ऐसे कौन से वाद हैं जिन्हें दीवानी प्रक्रिया के द्वारा लागू करवाया जा सकता है? 
उत्तर :- इस संहिता की धारा 9 के अनुसार हर अधिकारी जो दीवानी प्रकृति का है वह लागू कराया जा सकता है

प्रश्न:-  कोई व्यक्ति कैसे सुनिश्चित करता है कि अमुक अधिकार दिवानी संहिता द्वारा लागू कराया जा सकता है
उत्तर :- कानून किसी एक स्थान पर इस प्रकार के नागरिक अधिकारों की सूची नहीं बनाता है | वास्तविक परिस्थितियों जो जानने के लिए हमें भारत में कानून के विभिन्न स्रोतों पर ध्यान रखना पड़ता है | यह तो केवल उन्हीं स्रोतों से निकाले गए सिद्धांतों के आधार पर किसी अधिकार की स्थिति या लोक का पता चलता है | 
(1) आपके साथ एक संविदा करता है फिर उसे तोड़ देता है | इस अवस्था में ब अ से क्षतिपूर्ति की मांग करता है क्योंकि भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 72 से इस प्रकार का प्रधान बनाया गया है
(2) ब के द्वारा अ की संपत्ति ले ली जाती है, अब अपनी संपत्ति की वापसी के लिए न्यायालय के पास जा सकता है | इस विशिष्ट उपचार अधिनियम 1963 द्वारा लागू कराया जा सकता है|
(3) अ ब पर हमला करके उसे शारीरिक क्षति पहुंचाता है | जिसके परिणाम स्वरूप ब को अपनी चिकित्सा पर खर्च करना पड़ता है ब अ के विरुद्ध मुआवजे के लिए मुकदमा डाल सकता है, क्योंकि अपकृति कानून के अनुसार ब को इस प्रकार का अधिकार प्राप्त है |

प्रश्न:- 'वाद के कारण' का क्या तात्पर्य है? 
उत्तर :- क) वाद का कारण तथ्यों का वह समूह है जिसे किसी व्यक्ति को दीवानी मुकदमों को जीतने के लिए न्यायालय में अवश्य सिद्ध करना चाहिए | इसके 2 पक्ष होते हैं | तथ्यगत व कानूनी |
ख) तथ्यगत दृष्रगण से, यदि वादी के रूप में कोई व्यक्ति न्यायालय मैं अपना वाद पत्र प्रस्तुत करता है जो उसे उन्हें सभी तथ्यों को स्थापित करना पड़ता है जो उनके दावों को बना रहे हो या उसका समर्थन कर रहे हो | केवल इस तथ्यों के सिद्ध होते पर ही दावेदार न्यायालय में जीत सकता है |
ग) वाद कारण की अवधारणा का एक कानूनी पक्ष भी है| न्यायालय में आवेदन करने वाला एक व्यक्ति, उपचार प्राप्त करने के लिए अपने दिमाग में जितने भी तथ्य हैं उन सब को स्थापित करने में समर्थ हो सकता है| परंतु यह समस्त प्रत्यय स्वयं में ही यदि किसी कानूनी अधिकार को उत्पन्न नहीं करते तो उनके स्थापित हो जाने पर भी उपचार का आधार उत्पन्न नहीं होता है|

प्रश्न :- किसी वाद कारण का प्रक्रिया के रूप में क्या महत्व है? 
उत्तर  1) वादी के उत्तर पक्षियों को प्रमाणित करने का भार होता है जो उसके बाद के कारण होते हैं |
2) इन सभी तथ्यों को वाद-पत्र में लिखना आवश्यक होता है |
3) वादी को न्यायालय के क्षेत्राधिकार से संबंधित नियमों को भी दिमाग में अवश्य रखना चाहिए | कानून कहता है जहां वाद का कारण उत्पन्न हुआ है यह ही व्यवहारिक महत्व का क्षेत्राधिकार होता है |
4) जिस समय बाद का कारण उत्पन्न हुआ है वह भी महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि मुकदमे का प्रारंभिक बिंदु सामान्यत: वाह तिथि होती है जिस पर वाद का कारण उत्पन्न होता है

प्रश्न:- न्यायालय के क्षेत्राधिकार से संबंधित कौन सी बातें दिमाग में उत्पन्न होती हैं? 
उत्तर :- कोई भी मुकदमा केवल उसी न्यायालय मे लगाया जाना चाहिए जो किसी विशेष मुकदमे पर विचार करने में सक्षम हो | न्यायालयों के क्षेत्राधिकार पर निम्नलिखित सीमाएं आ सकती हैं -
क) आर्थिक सीमाएं
ख) विशेष वस्तु की प्रकृति से संबंधित सीमाएंसीमाएं
ग) स्थानीय सीमाएं
कुछ ऐसे भी न्यायालय हैं( जिला न्यायालय) जिसके पास आर्थिक सीमा जैसी कोई चीज नहीं है | नीचे के न्यायालय एक निश्चित सीमा से अधिक मूल्यों के मुकदमे नहीं देख सकते | समावेश या याचिका से संबंधित  प्राकृतिक और साधारण प्रतिक्रियाएं हैं जिन्हें उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय ही संविधान के अनुच्छेद 226 और 32 के क्रमबद्ध रूप से देख सकते हैं |

प्रश्न :- वह स्थान कौन सा है जहां पर मुकदमा दायर किया जा सकता है? 
उत्तर (क) अचल संपत्ति से संबंधित मुकदमा केवल उसी न्यायालय में लाया जा सकता है जिसके क्षेत्राधिकार में वह समाप्ति स्थित है |
ख) दूसरी अन्य प्रकार के मुकदमे उच्च न्यायालय में दाखिल किए जाते हैं जिसके क्षेत्राधिकार में प्रतिवाद रहता है, या उसका व्यापारिक संबंध हो अथवा वह स्वेच्छा से नौकरी करता हो या धन अर्जन के लिए वहां रहता हो अथवा जहां पूर्ण अथवा आंशिक रूप से वाद-कारण उत्पन्न हुआ हो |

दृष्टांत
1) अ ब से एक कर्ज लेता है | शर्त नामा आगरा में लिखा जाता है अ दिल्ली का निवासी है | ब के द्वारा पैसे की वापसी के लिए मुकदमा या तो दिल्ली के न्यायालय में अथवा आगरा के न्यायालय में दाखिल किया जा सकता है |
2) अ ने एक बैंक के पक्ष में अपनी अचल संपत्ति रेहन रखी | उसकी संपत्ति लखनऊ में स्थित है बैंक कानून में है अ वाराणसी का निवासी है | उस रेहन पर मुकदमा केवल लखनऊ में ही दाखिल किया जा सकता है |
3) अ पटना में रहने वाली एक घरेलू महिला  है उन्हें एक ऑपरेशन के सिलसिले में कोलकाता जाना पड़ता है | उसका ऑपरेशन कोलकाता में होता है उसके 2 महीने में पश्चात वह दार्जिलिंग चली जाती है  उन्हें जो इस सिलसिले का आशय करना पड़ता है वह डॉक्टर की लापरवाही के कारण वह या तो कोलकाता या दार्जिलिंग में इस संबंध में मुकदमा करा सकती हैं | परंतु वह पटना में दावा नहीं कर सकती हैं जहां पर रहती हैं | इसका कारण यह है वादी निवासी स्थान होना क्षेत्राधिकार की कोई कसौटी नहीं है |

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