Section 54 Arbitration and Conciliation Act, 1996
Section 54 Arbitration and Conciliation Act, 1996:
Power of judicial authority to refer parties to arbitration.—Notwithstanding anything contained in Part I or in the Code of Civil Procedure, 1908 (5 of 1908), a judicial authority, on being seized of a dispute regarding a contract made between persons to whom section 53 applies and including an arbitration agreement, whether referring to present or future differences, which is valid under that section and capable of being carried into effect, shall refer the parties on the application of either of them or any person claiming through or under him to the decision of the arbitrators and such reference shall not prejudice the competence of the judicial authority in case the agreement or the arbitration cannot proceed or becomes inoperative.
Supreme Court of India Important Judgments And Leading Case Law Related to Section 54 Arbitration and Conciliation Act, 1996:
Venture Global Engineering vs Satyam Computer Services Ltd. & on 10 January, 2008
Supreme Court of India Cites 47 - Cited by 83 - Full Document
Bhatia International vs Bulk Trading S. A. & Anr on 13 March, 2002
Supreme Court of India Cites 38 - Cited by 141 - Full Document
माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 54 का विवरण :
न्यायिक प्राधिकारी की पक्षकारों को माध्यस्थम् के लिए निर्दिष्ट करने की शक्ति-भाग 1 में या सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) में किसी बात के होते हुए भी, कोई न्यायिक प्राधिकारी, ऐसे व्यक्तियों के बीच की गई किसी संविदा के संबंध में विवाद को हाथ में लेने के पश्चात् जिनको धारा 53 लागू होती है और जिसके अंतर्गत कोई ऐसा माध्यस्थम् करार भी है जिसमें चाहे वर्तमान या भावी विवादों को निर्दिष्ट किया गया है और जो उस धारा के अधीन विधिमान्य हो और जिसे कार्यान्वित किया जा सके, उन पक्षकारों में से किसी एक के या उसके द्वारा या उसके अधीन दावा करने वाले किसी व्यक्ति के आवेदन पर मध्यस्थों के विनिश्चय के लिए पक्षकारों को निर्दिष्ट करेगा और ऐसे निर्देश से न्यायिक प्राधिकारी की सक्षमता पर तब कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा, यदि करार पर या माध्यस्थम् में कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती है या वह अप्रवर्तनीय हो जाता है ।
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