Section 53 Arbitration and Conciliation Act, 1996

 


Section 53  Arbitration and Conciliation Act, 1996: 

Interpretation.—In this Chapter “foreign award” means an arbitral award on differences relating to matters considered as commercial under the law in force in India made after the 28th day of July, 1924,—

(a) in pursuance of an agreement for arbitration to which the Protocol set forth in the Second Schedule applies, and

(b) between persons of whom one is subject to the jurisdiction of some one of such Powers as the Central Government, being satisfied that reciprocal provisions have been made, may, by notification in the Official Gazette, declare to be parties to the Convention set forth in the Third Schedule, and of whom the other is subject to the jurisdiction of some other of the Powers aforesaid, and

(c) in one of such territories as the Central Government, being satisfied that reciprocal provisions have been made, may, by like notification, declare to be territories to which the said Convention applies, and for the purposes of this Chapter an award shall not be deemed to be final if any proceedings for the purpose of contesting the validity of the award are pending in the country in which it was made.




Supreme Court of India Important Judgments And Leading Case Law Related to Section 53  Arbitration and Conciliation Act, 1996: 

Venture Global Engineering vs Satyam Computer Services Ltd. & on 10 January, 2008

Supreme Court of India Cites 47 - Cited by 83 - Full Document

Bhatia International vs Bulk Trading S. A. & Anr on 13 March, 2002

Supreme Court of India Cites 38 - Cited by 141 - Full Document



माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 53 का विवरण : 

निर्वचन-इस अध्याय में, विदेशी पंचाट" से ऐसा माध्यस्थम् पंचाट अभिप्रेत है जो उन विषयों से संबंधित मतभेदों पर, जिन्हें भारत में प्रवृत्त किसी विधि के अधीन वाणिज्यिक समझा जाता है, 28 जुलाई, 1924 के पश्चात्-

(क) ऐसे माध्यस्थम् करार के अनुसरण में दिया गया है जिसे दूसरी अनुसूची में उपवर्णित प्रोटोकोल लागू होता है ; तथा

(ख) ऐसे व्यक्तियों के बीच दिया गया है जिनमें से एक ऐसी शक्तियों में से किसी एक की अधिकारिता के अधीन है जिनकी बाबत भारत सरकार अपना यह समाधान हो जाने पर कि व्यतिकारी उपबंध कर दिए गए हैं, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, यह घोषित करे कि वे उस अभिसमय के पक्षकार हैं, जो तीसरी अनुसूची में उपवर्णित हैं और जिनमें से दूसरा पूर्वोक्त शक्तियों में से किसी अन्य की अधिकारिता के अधीन है ; तथा

(ग) ऐसे राज्यक्षेत्रों में से एक में दिया गया है जिन्हें भारत सरकार अपना यह समाधान हो जाने पर कि व्यतिकारी उपबंध कर दिए गए हैं, वैसी ही अधिसूचना द्वारा, ऐसे राज्यक्षेत्र घोषित करे जिनको उक्त अभिसमय लागू है, और यदि पंचाट की विधिमान्यता को चुनौती देने के प्रयोजन के लिए कोई कार्यवाहियां उस देश में लंबित हैं जिसमें वह दिया गया था तो पंचाट के बारे में इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए यह नहीं समझा जाएगा कि वह अंतिम है ।



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