Section 228A IPC in Hindi and English
Section 228A IPC in Hindi and English
Section 228A of IPC 1860:- Disclosure of identity of the victim of certain offences etc. -
(1) Whoever prints or publishes the name or any matter which may make known the identity of any person against whom an offence under section 376, "section 376A, section 376AB, section 376B, section 376C, section 376D, section 376DA, section 376DB" [substituted vide - Criminal Law (Amendment) Act, 2018 Dated - 11 Aug, 2018] or section 376E is alleged or found to have been committed (hereafter in this section referred to as the victim) shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to two years and shall also be liable to fine.
(2) Nothing in sub-section (1) extends to any printing or publication of the name or any matter which may make known the identity of the victim if such printing or publication is--
(a) by or under the order in writing of the officer-in-charge of the police station or the police officer making the investigation into such offence acting in good faith for the purposes of such investigation; or
(b) by, or with the authorisation in writing of, the victim; or
(c) where the victim is dead or minor or of unsound mind, by, or with the authorisation in writing of the next of kin of the victim:
Provided that no such authorisation shall be given by the next-of-kin to anybody other than the chairman or the secretary, by whatever name called, of any recognised welfare institution or organisation.
Explanation - For the purposes of this sub-section, "recognised welfare institution or organisation" means a social welfare institution or organisation recognised in this behalf by the Central or State Government.
(3) Whoever prints or publishes any matter in relation to any proceeding before a Court with respect to an offence referred to in sub-section (1) without the previous permission of such Court shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to two years and shall also be liable to fine.
Explanation - The printing or publication of the judgment of any High Court or the Supreme Court does not amount to an offence within the meaning of this section.
Supreme Court of India Important Judgments And Case Law Related to Section 228A of Indian Penal Code 1860:
Nipun Saxena vs Union Of India Ministry Of Home ... on 11 December, 2018
Nipun Saxena vs Union Of India on 11 December, 2018
Ravishankar @ Baba Vishwakarma vs The State Of Madhya Pradesh on 3 October, 2019
State Of Himachal Pradesh vs Shree Kant Shekari on 13 September, 2004
Om Prakash vs State Of U.P on 11 May, 2006
State Of Karnataka vs Puttaraja on 27 November, 2003
Bhupinder Sharma vs State Of Himachal Pradesh on 16 October, 2003
State Of Punjab vs Ramdev Singh on 17 December, 2003
Premiya @ Prem Prakash vs State Of Rajasthan on 22 September, 2008
S.Ramakrishna vs State Rep.By Pub.Prosr., H.C. A.P on 20 October, 2008
आईपीसी, 1860 (भारतीय दंड संहिता) की धारा 228 क का विवरण - कतिपय अपराधों आदि से पीड़ित व्यक्ति की पहचान का प्रकटीकरण -
(1) जो कोई किसी नाम या अन्य बात को, जिससे किसी ऐसे व्यक्ति की (जिसे धारा में इसके पश्चात् पीड़ित व्यक्ति कहा गया है) पहचान हो सकती है, जिसके विरुद्ध धारा 376, " धारा 376क, धारा 376 कख, धारा 376 ख, धारा 376 ग, धारा 376 घ, धारा 376 घक, धारा 376 घख" [क्रिमिनल लॉ (संशोधन) अधिनियम, 2018, दिनांक – 11 अगस्त 2018 द्वारा प्रतिस्थापित] या धारा 376ङ के अधीन किसी अपराध का किया जाना अभिकथित है या किया गया पाया गया है, मुद्रित या प्रकाशित करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
(2) उपधारा (1) की किसी भी बात का विस्तार किसी नाम या अन्य बात के मुद्रण या प्रकाशन पर, यदि उससे पीड़ित व्यक्ति की पहचान हो सकती है, तब नहीं होता है जब ऐसा मुद्रण या प्रकाशन -
(क) पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के या ऐसे अपराध का अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी के, जो ऐसे अन्वेषण के प्रयोजन के लिए सद्भावपूर्वक कार्य करता है, द्वारा या उसके लिखित आदेश के अधीन किया जाता है; या
(ख) पीड़ित व्यक्ति द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से किया जाता है; या
(ग) जहां पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है अथवा वह अवयस्क या विकृतचित्त है वहां, पीड़ित व्यक्ति के निकट संबंधी द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से किया जाता है:
परन्तु निकट संबंधी द्वारा कोई ऐसा प्राधिकार किसी मान्यता प्राप्त कल्याण संस्था या संगठन के अध्यक्ष या सचिव से, चाहे उसका जो भी नाम हो, भिन्न किसी अन्य व्यक्ति को नहीं दिया जाएगा।
स्पष्टीकरण - इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, मान्यता प्राप्त कल्याण संस्था या संगठन से केन्द्रीय या राज्य सरकार द्वारा इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए मान्यता प्राप्त कोई समाज कल्याण संस्था या संगठन अभिप्रेत है।
(3) जो कोई उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी अपराध की बाबत किसी न्यायालय के समक्ष किसी कार्यवाही के संबंध में कोई बात, उस न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना मुद्रित या प्रकाशित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
स्पष्टीकरण - किसी उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के निर्णय का मुद्रण या प्रकाशन इस धारा के अर्थ में अपराध की कोटि में नहीं आता है।
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