Section 111 IPC in Hindi

 Section 111 IPC in Hindi and English



Section 111 of IPC 1860:-Liability of abettor when one act abetted and different act done -

When an act is abetted and a different act is done, the abettor is liable for the act done, in the same manner and to the same extent as if he had directly abetted it : 

Proviso - Provided the act done was a probable consequence of the abetment, and was committed under the influence of the instigation, or with the aid or in pursuance of the conspiracy which constituted the abetment.

Illustrations -

(a) A instigates a child to put poison into the food of Z, and gives him poison for that purpose. The child, in consequence of the instigation, by mistake puts the poison into the food of Y, which is by the side of that of Z. Here, if the child was acting under the influence of A's instigation, and the act done was under the circumstances a probable consequence of the abetment. A is liable in the same manner and to the same extent as if he had instigated the child to put the poison into the food of Y.

(b) A instigates B to burn Z's house. B sets fire to the house and at the same time commits theft of property there. A, though guilty of abetting the burning of the house, is not guilty of abetting the theft; for the theft was a distinct act, and not a probable consequence of the burning.

(c) A instigates B and C to break into an inhabited house at midnight for the purpose of robbery, and provides them with arms for that purpose. B and C break into the house, and being resisted by Z, one of the inmates, murder Z. Here, if that murder was the probable consequence of the abetment, A is liable to the punishment provided for murder.



Supreme Court of India Important Judgments And Case Law Related to Section 111 of Indian Penal Code 1860: 

Krishna Tiwary And Anr. vs State Of Bihar on 18 January, 2001

Noorul Huda Maqbool Ahmed vs Ram Deo Tyagi And Others on 4 July, 2011

Mohd.Haroon & Ors vs Union Of India & Anr on 26 March, 2014

Mohd.Haroon & Ors vs Union Of India & Anr on 26 March, 1947


आईपीसी, 1860 (भारतीय दंड संहिता) की धारा 111 का विवरण - दुष्प्रेरक का दायित्व जब एक कार्य का दुष्प्रेरण किया गया है और उससे भिन्न कार्य किया गया है -

जबकि किसी एक कार्य का दुष्प्रेरण किया जाता है, और कोई भिन्न कार्य किया जाता है, तब दुष्प्रेरक उस किए गए कार्य के लिए उसी प्रकार से और उसी विस्तार तक दायित्व के अधीन है, मानो उसने सीधे उसी कार्य का दुष्प्रेरण किया हो :

परन्तुक - परन्तु यह तब जबकि किया गया कार्य दुष्प्रेरण का अधिसंभाव्य परिणाम था और उस उकसाहट के असर के अधीन या उस सहायता से या उस षड़यंत्र के अनुसरण में किया गया था जिससे वह दुष्प्रेरण गठित होता है।

दृष्टांत -

(क) एक शिशु को य के भोजन में विष डालने के लिए क उकसाता है, और उस प्रयोजन से उसे विष परिदत्त करता है। वह शिशु उस उकसाहट के परिणामस्वरूप भूल से म के भोजन में, जो य के भोजन के पास रखा हुआ है, विष डाल देता है। यहां, यदि वह शिशु क के उकसाने के असर के अधीन उस कार्य को कर रहा था, और किया गया कार्य उन परिस्थितियों में उस दुष्प्रेरण का अधिसंभाव्य परिणाम है, तो क उसी प्रकार और उसी विस्तार तक दायित्व के अधीन है, मानो उसने उस शिशु को म के भोजन में विष डालने के लिए उकसाया हो।

(ख) ख को य का गृह जलाने के लिए क उकसाता है। ख उस गृह को आग लगा देता है और उसी समय वहां संपत्ति की चोरी करता है। क यद्यपि गृह जलाने के दुष्प्रेरण का दोषी है, किन्तु चोरी के दुष्प्रेरण का दोषी नहीं है; क्योंकि वह चोरी एक अलग कार्य थी और उस गृह के जलाने का अधिसंभाव्य परिणाम नहीं थी।  

(ग) ख और ग को बसे हुए गृह में अर्धरात्रि में लूट के प्रयोजन से भेदन करने के लिए क उकसाता है, और उनको उस प्रयोजन के लिए आयुध देता है। ख और ग वह गृह भेदन करते हैं, और य द्वारा जो निवासियों में से एक है, प्रतिरोध किए जाने पर, य की हत्या कर देते हैं। यहां, यदि वह हत्या उस दुष्प्रेरण का अधिसंभाव्य परिणाम थी, तो क हत्या के लिए उपबंधित दण्ड से दण्डनीय है।


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