Section 82 CrPC
Section 82 CrPC in Hindi and English
Section 82 of CrPC 1973 :- 82. Proclamation for person absconding --- (1) If any Court has reason to believe (whether after taking evidence or not) that any person against whom a warrant has been issued by it has absconded or is concealing himself so that such warrant cannot be executed, such Court may publish a written proclamation requiring him to appear at a specified place and at a specified time not less than thirty days from the date of publishing such proclamation.
(2) The proclamation shall be published as follows :
(i) (a) it shall be publicly read in some conspicuous place of the town or village in which such person ordinarily resides;
(b) it shall be affixed to some conspicuous part of the house or homestead in which such person ordinarily resides or to some conspicuous place of such town or village;
(c) a copy thereof shall be affixed to some conspicuous part of the Courthouse;
(ii) the Court may also, if it thinks fit, direct a copy of the proclamation to be published in a daily newspaper circulating in the place in which such person ordinarily resides.
(3) A statement in writing by the Court issuing the proclamation to the effect that the proclamation was duly published on a specified day, in the manner specified in clause (i) of sub-section (2), shall be conclusive evidence that the requirements of this section have been complied with and that the proclamation was published on such day.
(4) Where a proclamation published under sub-section (1) is in respect of a person accused of an offence punishable under section 302, 304, 364, 367, 382, 392, 393, 394, 395, 396, 397, 398, 399, 400, 402, 436, 449, 459 or 460 of the Indian Penal Code (45 of 1860), and such person fails to appear at the specified place and time required by the proclamation, the Court may, after making such inquiry as it thinks fit, pronounce him a proclaimed offender and make a declaration to that effect.
(5) The provisions of sub-sections (2) and (3) shall apply to a declaration made by the Court under sub-section (4) as they apply to the proclamation published under subsection (1).
Supreme Court of India Important Judgments And Case Law Related to Section 82 of Criminal Procedure Code 1973:
Subhash Popatlal Dave vs Union Of India & Anr on 16 July, 2013
Sharad Kumar Tyagi vs State Of Uttar Pradesh & Ors on 18 January, 1989
Pankaj Jain vs Union Of India on 23 February, 2018
Jayendra Vishnu Thakur vs State Of Maharashtra on 11 May, 2009
State Of Bihar vs Rajballav Prasad @ Rajballav Pd.on 24 November, 2016
Gajanand Agarwal vs State Of Orissa And Anr on 12 April, 2007
M. Manohar Reddy & Anr vs Union Of India & Ors on 4 February, 2013
Amina Ahmed Dossa & Ors vs State Of Maharashtra on 15 January, 2001
State Of West Bengal vs Jugal Kishore More & Anr on 10 January, 1969
Ajendraprasadji N. Pande & Anr vs Swami Keshavprakeshdasji N. & Ors on 8 December, 2006
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 82 का विवरण : - 82. फरार व्यक्ति के लिए उद्घोषणा -- (1) यदि किसी न्यायालय को (चाहे साक्ष्य लेने के पश्चात् या लिए बिना) यह विश्वास करने का कारण है कि कोई व्यक्ति जिसके विरुद्ध उसने वारण्ट जारी किया है, फरार हो गया है, या अपने को छिपा रहा है जिससे ऐसे वारण्ट का निष्पादन नहीं किया जा सकता तो ऐसा न्यायालय उससे यह अपेक्षा करने वाली लिखित उद्घोषणा प्रकाशित कर सकता है कि वह व्यक्ति विनिर्दिष्ट स्थान में और विनिर्दिष्ट समय पर, जो उस उद्घोषणा के प्रकाशन की तारीख से कम से कम तीस दिन पश्चात् का होगा, हाजिर हो।
(2) उद्घोषणा निम्नलिखित रूप से प्रकाशित की जाएगी :
(i) (क) वह उस नगर या ग्राम के, जिसमें ऐसा व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है, किसी सहजदृश्य स्थान में सार्वजनिक रूप से पढ़ी जाएगी; ।
(ख) वह उस गृह या वासस्थान के, जिसमें ऐसा व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है, किसी सहजदृश्य भाग पर या ऐसे नगर या ग्राम के किसी सहजदृश्य स्थान पर लगाई जाएगी;
(ग) उसकी एक प्रति उस न्याय सदन के किसी सहजदृश्य भाग पर लगाई जाएगी;
(ii) यदि न्यायालय ठीक समझता है तो वह यह निदेश भी दे सकता है कि उद्घोषणा की एक प्रति उस स्थान में, परिचालित किसी दैनिक समाचारपत्र में प्रकाशित की जाए जहाँ ऐसा व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है।
(3) उद्घोषणा जारी करने वाले न्यायालय द्वारा यह लिखित कथन कि उद्घोषणा विनिर्दिष्ट दिन उपधारा (2) के खण्ड (i) में विनिर्दिष्ट रीति से सम्यक् रूप से प्रकाशित कर दी गई है, इस बात का निश्चायक साक्ष्य होगा कि इस धारा की अपेक्षाओं का अनुपालन कर दिया गया है और उद्घोषणा उस दिन प्रकाशित कर दी गई थी।
(4) जहाँ उपधारा (1) के अधीन प्रकाशित की गई उद्घोषणा भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 302, 304, 364,367, 382, 392, 393, 394, 395, 396, 397, 398, 399, 400, 402, 436, 449, 459 या 460 के अधीन दंडनीय अपराध के अभियुक्त व्यक्ति के संबंध में है और ऐसा व्यक्ति उद्घोषणा में अपेक्षित विनिर्दिष्ट स्थान और समय पर उपस्थित होने में असफल रहता है तो न्यायालय, तब ऐसी जांच करने के पश्चात् जैसी वह ठीक समझता है, उसे उद्घोषित अपराधी प्रकट कर सकेगा और उस प्रभाव की घोषणा कर सकेगा।
(5) उपधारा (2) और उपधारा (3) के उपबंध न्यायालय द्वारा उपधारा (4) के अधीन की गई घोषणा को उसी प्रकार लागू होंगे जैसे वे उपधारा (1) के अधीन प्रकाशित उद्घोषणा को लागू होते हैं ।
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