Section 162 CrPC

 

Section 162 CrPC in Hindi and English



Section 162 of CrPC 1973 :- 162. Statements to police not to be signed: Use of statements in evidence --- (1) No statement made by any person to a police officer in the course of an investigation under this Chapter, shall, if reduced to writing, be signed by the person making it; nor shall any such statement or any record thereof, whether in a police diary or otherwise, or any part of such statement or record, be used for any purpose, save as hereinafter provided, at any inquiry or trial in respect of any offence under investigation at the time when such statement was made :

Provided that when any witness is called for the prosecution in such inquiry or trial whose statement has been reduced into writing as aforesaid, any part of his statement, if duly proved, may be used by the accused, and with the permission of the Court, by the prosecution, to contradict such witness in the manner provided by section 145 of the Indian Evidence Act, 1872 (1 of 1872) and when any part of such statement is so used, any part thereof may also be used in the re-examination of such witness, but for the purpose only of explaining any matter referred to in his cross-examination. in this section shall be deemed to apply to any statement falling within the provisions of clause (1) of section 32 of the Indian Evidence Act, 1872 (1 of 1872), or to affect the provisions of section 27 of that Act. 

Explanation — An omission to state a fact or circumstance in the statement referred to in sub-section (1) may amount to contradiction if the same appears to be significant and otherwise relevant having regard to the context in which such omission occurs and whether any omission amounts to a contradiction in the particular context shall be a question of fact.




Supreme Court of India Important Judgments And Case Law Related to Section 162 of Criminal Procedure Code 1973:

Tahsildar Singh And Another vs The State Of Uttar Pradesh on 5 May, 1959

Ramkishan Mithanlal Sharma vs The State Of Bombay.[And Two  on 22 October, 1954

Tofan Singh vs The State Of Tamil Nadu on 29 October, 2020

State Of U. P vs Deoman Upadhyaya on 6 May, 1960

State Of U.P. vs Deoman Upadhyaya on 6 May, 1960

Raghunandan vs State Of U.P on 10 January, 1974

Khatri & Ors. Etc vs State Of Bihar & Ors on 10 March, 1981

State Of Kerala vs Babu & Ors on 4 May, 1999

Sidhartha Vashisht @ Manu Sharma vs State (Nct Of Delhi) on 19 April, 2010

Raja Ram Jaiswal vs State Of Bihar on 4 April, 1963



दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 162 का विवरण :  -  162. पुलिस से किए गए कथनों का हस्ताक्षरित न किया जाना : कथनों का साक्ष्य में उपयोग --

(1) किसी व्यक्ति द्वारा किसी पुलिस अधिकारी से इस अध्याय के अधीन अन्वेषण के दौरान किया गया कोई कथन, यदि लेखबद्ध किया जाता है तो कथन करने वाले व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित नहीं किया जाएगा, और न ऐसा कोई कथन या उसका कोई अभिलेख चाहे वह पुलिस डायरी में हो या न हो, और न ऐसे कथन या अभिलेख का कोई भाग ऐसे किसी अपराध की, जो ऐसा कथन किए जाने के समय अन्वेषणाधीन था, किसी जांच या विचारण में, इसमें इसके पश्चात् यथा उपबंधित के सिवाय, किसी भी प्रयोजन के लिए उपयोग में लाया जाएगा :

परन्तु जब कोई ऐसा साक्षी, जिसका कथन उपर्युक्त रूप में लेखबद्ध कर दिया गया है, ऐसी जांच या विचारण में अभियोजन की ओर से बुलाया जाता है तब यदि उसके कथन का कोई भाग, सम्यक् रूप से साबित कर दिया गया है तो, अभियुक्त द्वारा और न्यायालय की अनुज्ञा से अभियोजन द्वारा उसका उपयोग ऐसे साक्षी का खण्डन करने के लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 145 द्वारा उपबंधित रीति से किया जा सकता है और जब ऐसे कथन का कोई भाग इस प्रकार उपयोग में लाया जाता है तब उसका कोई भाग ऐसे साक्षी की पुनः परीक्षा में भी, किन्तु उसकी प्रतिपरीक्षा में निर्दिष्ट किसी बात को स्पष्टीकरण करने के प्रयोजन से ही, उपयोग में लाया जा सकता है।

(2) इस धारा की किसी बात के बारे में यह न समझा जाएगा कि वह भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 32 के खण्ड (1) के उपबंधों के अन्दर आने वाले किसी कथन को लागू होती है या उस अधिनियम की धारा 27 के उपबंधों पर प्रभाव डालती है।

स्पष्टीकरण -- उपधारा (1) में निर्दिष्ट कथन में किसी तथ्य या परिस्थिति के कथन का लोप या खण्डन हो सकता है यदि वह उस संदर्भ को ध्यान में रखते हुए जिसमें ऐसा लोप किया गया है महत्वपूर्ण और अन्यथा संगत प्रतीत होता है। और कोई लोप किसी विशिष्ट संदर्भ में खण्डन है या नहीं यह तथ्य का प्रश्न होगा।



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