भारत का संविधान निरंकुश बंदीकरण एवं निरोध के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है
प्रश्न- "भारत का संविधान निरंकुश बंदीकरण एवं निरोध के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है।" विवेचना कीजिए।
( "the constitution of India provide protection against arbitrary arrest and detention."discuss. )
उत्तर- संविधान के अनुच्छेद 22 में व्यक्तियों की गिरफ्तारी एवं निरोध के संरक्षण के बारे में प्रावधान किया गया है।
अनुच्छेद 22 दो प्रकार के संरक्षण प्रदान करता है-
1. सामान्य गिरफ्तारी के बारे में संरक्षण, तथा
2. निवारक निरोध विधियों के अधीन निरोध से संरक्षण
(1) सामान्य गिरफ्तारी के बारे में संरक्षण- अनुच्छेद 22(1) व (2) में सामान्य गिरफ्तारी के बारे में संरक्षण की व्यवस्था की गई है इसके अनुसार-
" किसी भी व्यक्ति को जो गिरफ्तार किया गया है ऐसी गिरफ्तारी के कारणों से यथा शीघ्र अवगत कराए बिना अभिरक्षा में निरुद्ध नहीं रखा जाएगा तथा अपनी रुचि के विधि व्यवसायी से परामर्श करने और प्रतिरक्षा कराने के अधिकार से वंचित नहीं रखा जायेगा;
प्रत्येक व्यक्ति को, जो गिरफ्तार किया गया है और अभिरक्षा में निरुद्ध रखा गया है, गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक यात्रा के लिए आवश्यक समय को छोड़कर ऐसी गिरफ्तारी से 24 घंटे की अवधि में निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा और ऐसे किसी भी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के प्राधिकार के बिना उक्त अवधि के लिए अभिरक्षा में निरुद्ध नहीं रखा - जाएगा। "
उपरोक्त व्यवस्था से सामान्य गिरफ्तारी के बारे में तीन प्रकार के संरक्षण स्पष्ट होते हैं-
1. गिरफ्तारी के कारण जानने का अधिकार,
2.अपनी रुचि के विधि व्यवसायी( वकील) से परामर्श करने का अधिकार, तथा
3. गिरफ्तारी के बाद 24 घंटों में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश होने का अधिकार ।
1.गिरफ्तारी के कारण जानने का अधिकार- गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति का सबसे पहला अधिकार गिरफ्तारी के कारण जानने का है गिरफ्तारी का कारण बताए बिना किसी भी व्यक्ति को अधिक समय तक निरुद्ध नहीं रखा जा सकता है। मध्यप्रदेश राज्य बनाम शोभाराम (ए आई आर 1966 एस सी 1910) के मामले में तो यहां तक कहा गया है कि गिरफ्तार व्यक्ति के जमानत पर छूट जाने के बाद भी उसका गिरफ्तारी के कारणों को जानने का अधिकार बना रहता है। एक और प्रकरण तारा पद बनाम स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल (ए आई आर 1951 एस सी 174) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा ही है अभिनिर्धारित किया गया है कि यदि गिरफ्तारी के कारण बताने में विलंब किया जाता है तो विलम्ब का स्पष्टीकरण दिया जाना आवश्यक होगा।
2. विधि व्यवसाय से परामर्श करने का अधिकार- गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अपनी रुचि के विधि व्यवसायी (वकील/ अधिवक्ता) से परामर्श करने तथा उसे प्रतिरक्षा कराने का अधिकार है। यदि कोई अभियुक्त या गिरफ्तार किया गया व्यक्ति निर्धन है और निर्धनता के कारण विधि व्यवसायी की नियुक्ति करने में असमर्थ है तो ऐसे व्यक्ति को निशुल्क विधिक सहायता प्राप्त करने अर्थात राज्य के खर्च पर विधि व्यवसायी की नियुक्ति कराने कराने का अधिकार है। हुस्न आरा खातून बनाम स्टेट ऑफ़ बिहार (ए आई आर 1979 एस सी 1377) के मामले में इस अधिकार की पुष्टि की गई है।
पावेल बनाम अलबामा (287 यू एस45) के एक अमेरिकी मामले में यह कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति निर्धनता के कारण विधि व्यवसायी की नियुक्ति करने में असमर्थ है तो न्यायालय का यह कर्तव्य होगा कि वह उसके लिए विधि व्यवसायी की नियुक्ति करे।
भारत में भी कला बेन कला भाई देसाई बनाम अला भाई करमशी भाई देसाई (ए आई आर 2000 गुजरात 232) के मामले में निशुल्क विधिक सहायता के अधिकार से अवगत कराने का दायित्व बार एवं बेंच पर आरोपित किया गया है।
3. 24 घंटों में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश होने का अधिकार- गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति का तीसरा अधिकार गिरफ्तारी के बाद यात्रा के समय को छोड़कर 24 घंटों में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए जाने का है। मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को 24 घंटे से अधिक निरोध में नहीं रखा जा सकता है। गणपति केशवराव बनाम नफीसूल हुसैन (ए आई आर 1954 एस सी 636) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि यदि गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को 24 घंटों में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश नहीं किया जाता है तो वह जमानत पर रिहा होने अथवा अन्यथा छूट जाने का हकदार हो जाता है। गिरफ्तारी से संरक्षण के संबंध में जोगिंदर कुमार बनाम स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश [(1994) 4, एससीसी 260] का एक महत्वपूर्ण मामला है इसमें उच्चतम न्यायालय द्वारा गिरफ्तारी के संबंध में पुलिस की मनमानी को रोकने के लिए कुछ दिशा-निर्देश दिए गए हैं, जैसे-
क. गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के परिजन अथवा मित्र को ऐसी गिरफ्तारी की सूचना दी जाए, तथा
ख. पुलिस अधिकारी द्वारा गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को उसके अधिकारों से अवगत कराया जाए।
2. निवारक निरोध विधियों के अधीन गिरफ्तारी एवं निरोध से संरक्षण- निवारक निरोध विधियों के अधीन गिरफ्तारी एवं निरोध की व्यवस्था भारत के संविधान की एक महत्वपूर्ण विशेषता है ऐसी गिरफ्तारी एवं निरोध को सामान्य गिरफ्तारी एवं निरोध से भिन्न माना गया है। ऐसी गिरफ्तारी एवं निरोध मुख्यतया अपराधों की आशंका को रोकने तथा राष्ट्र हित में किया जाता है। ए. के. गोपालन बनाम स्टेट ऑफ़ मद्रास ( ए आई आर 1950 एस सी 27) तथा आर बी राजभर बनाम स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल (ए आई आर 1975 एस सी 623) के मामलों में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि व्यक्तिक स्वतंत्रता की तुलना में राष्ट्रहित सर्वोपरि है। व्यक्तिक स्वतंत्रता के पीछे राष्ट्रीय हितों की बलि नहीं दी जा सकती।
हमारे देश में समय-समय पर निवारक निरोध विधियों का निर्माण किया गया है जैसे निवारक निरोध अधिनियम 1950, आंतरिक सुरक्षा अधिनियम 1971, राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम 1980, आदि ए के राय बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया (ए आई आर 1982 एस सी 710) के मामले में रासुका के उपबंधों को संवैधानिक घोषित करते हुए यह कहा गया है कि ये न तो अस्पष्ट हैं और न ही मनमाने।
इन विधियों के दुरुपयोग को रोकने के लिए संविधान के अनुच्छेद 22 के खंड (4) से (7) तक में कुछ संरक्षणों का उल्लेख किया गया है, जैसे -
1.सलाहकार बोर्ड द्वारा पुनर्विलोकन किया जाना,
2. गिरफ्तारी एवं निरोध के कारणों से अवगत कराया जाना,
3. अभ्यावेदन प्रस्तुत करने का अधिकार, तथा सलाहकार बोर्ड की प्रक्रिया।
1.सलाहकार बोर्ड द्वारा पुनर्विलोकन- निवारक निरोध के दुरुपयोग पर अंकुश लगाने के लिए इसे सलाहकार बोर्ड की पुनर्विलोकन शक्तियों के अधीन रखा गया है। बोर्ड का गठन उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों से किया जाता है। सलाहकार बोर्ड निरोध के कारणों के औचित्य पर विचार कर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करता है। शिब्बनलाल बनाम स्टेट ऑफ उत्तर प्रदेश (ए आई आर 1954 एस सी 179) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि यदि सलाहकार बोर्ड की राय में निरोध के पर्याप्त कारण नहीं है तो सरकार को निरोध के आदेश को वापस लेना होता है।
पूरनलाल लखन पाल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (ए आई आर 1958 एस सी 163) के मामले में भी यह कहा गया है कि सलाहकार बोर्ड का मुख्य कार्य निरोध के औचित्य पर विचार करना है यह अवधि निर्धारित नहीं करता।
2. गिरफ्तारी एवं विरोध के कारण जानने का अधिकार- अनुच्छेद 22(5) के अंतर्गत निरोध में रखे गए व्यक्ति के निरोध के कारण जानने का अधिकार प्रदान किया गया है। इसके अनुसार निरोध का आदेश देने वाले प्राधिकारी का यह कर्तव्य होगा कि वह निरोध में रखे जाने वाले व्यक्ति को निरोध के कारणों से अवगत कराना होगा।
स्टेट ऑफ मुंबई बनाम आत्माराम श्रीधर वैद्य ( ए आई आर 1951 एस सी 157) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि कारणों का इतना स्पष्ट एवं अपरिवर्तनीय होना आवश्यक है कि निरुद्ध किया गया व्यक्ति आसानी से अपनी प्रतिरक्षा (बचाव) कर सके। इसी प्रकार हंसमुख बनाम स्टेट ऑफ गुजरात (ए आई आर 1981 एस सी 28) तथा लालू भाई जोगी भाई बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (ए आई आर 1981 एससी 728) के मामलों में भी यही कहा गया है कि निरोध के आधार अत्यंत स्पष्ट एवं लिखित में संसूचित किए जाने आवश्यक हैं। उनका ऐसी भाषा में होना भी आवश्यक है जिसे निरुद्ध किया गया व्यक्ति समझता हो।
3. अभ्यावेदन प्रस्तुत करने का अधिकार- निरोध व्यक्ति का तीसरा महत्वपूर्ण अधिकार अभ्यावेदन करने का है। वस्तुतः अनुच्छेद 22(5) के अंतर्गत अभ्यावेदन के अधिकार से अवगत कराने का कर्तव्य निरोध का आदेश देने वाले प्राधिकारी का है। स्टेट ऑफ महाराष्ट्र बनाम संतोष शंकराचार्य (ए आई आर 2000 एस सी 2504) के मामले में भी उच्चतम न्यायालय द्वारा यही कहा गया है कि सक्षम प्राधिकारी का कर्तव्य है कि वह निरुद्ध व्यक्ति को उसके अभ्यावेदन करने के अधिकार से अवगत कराए। यदि सक्षम प्राधिकारी द्वारा निरुद्ध व्यक्ति को इस अधिकार से अवगत नहीं कराया जाता है तो इसे संविधान के अनुच्छेद 22(5) का अतिक्रमण माना जाएगा। श्री रघुनंदन बनाम स्टेट ऑफ तमिलनाडु (ए आई आर 2002 एस 1460) के मामले में तो यहां तक कहा गया है कि सक्षम प्राधिकारी को निवारक निरोध विधि के अधीन निरुद्ध व्यक्ति को सुनवाई का अवसर दिए बिना दंडित करने का अधिकार नहीं है।
4.प्रक्रिया- सलाहकार बोर्ड द्वारा सुनवाई की प्रक्रिया वह होगी जो संसद द्वारा विहित की जाए। राज्य सरकार द्वारा यदि कोई प्रक्रिया निर्धारित की गई है तो उस पर संसद द्वारा निर्धारित प्रक्रिया पूर्वता रखेगी।
निरोध के आदेश के अवैध अथवा दुर्भावनापूर्ण होने के कथन को साबित करने का भार उस व्यक्ति पर होगा जो ऐसा कथन करता है जैसा कि आशुतोष लाहिरी बनाम स्टेट( ए आई आर 1953 एस सी 451) के मामले में अभिनिर्धारित किया गया है।
Conclusion
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